मौन में मुखर हुई, आई बूंदें

मौन में मुखर हुई, आई बूंदें,
वर्षा की कुछ बातें, बोलने लगीं।
धारा को जैसे आंसुओं से सींचा केसे ,
राज ए दिल खोलने लगीं।

वो जमीं पर जब गिरी,
एक नन्हें बीज को पानी मिल गया ,
धरणीं का सीना चीर वो आकाश में जैसे खिल गया ।

फिर सर्द मौसम ,रात में ,
जगनुओं के साथ में,
फिर बूंद औंस की बनी ,
फिर सूर्य की किरण पड़ी,
आकाश फिर से चल पड़ी।

फिर घिरे बदल भयंकर ,
आ गया जिसे बवंडर,
बिजली कड़कते बादलों ने,
वर्षा जल संचयन में फूट डाली
गिर पड़े वो,फिर धारा के आंगन में ।

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सतीश भट्ट पेशे से एक स्वस्थ कर्मी हैं, इनकी रुचि कविताएं लिखना, तथा फोटोग्राफी है । अभी तक इन्होंने 300 तक कविताएं,लघु कविताएं और गीत लिख चुके हैं,कुछ लेखन कार्य प्रकाशित भी हुआ है, जिसे काफी पसंद किया गया ।

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