मौन में मुखर हुई, आई बूंदें,
वर्षा की कुछ बातें, बोलने लगीं।
धारा को जैसे आंसुओं से सींचा केसे ,
राज ए दिल खोलने लगीं।
वो जमीं पर जब गिरी,
एक नन्हें बीज को पानी मिल गया ,
धरणीं का सीना चीर वो आकाश में जैसे खिल गया ।
फिर सर्द मौसम ,रात में ,
जगनुओं के साथ में,
फिर बूंद औंस की बनी ,
फिर सूर्य की किरण पड़ी,
आकाश फिर से चल पड़ी।
फिर घिरे बदल भयंकर ,
आ गया जिसे बवंडर,
बिजली कड़कते बादलों ने,
वर्षा जल संचयन में फूट डाली
गिर पड़े वो,फिर धारा के आंगन में ।