उत्तरी लेबनान के एक गांव में शेख अब्बास नाम का एक बड़ा जमींदार रहता था। वह अपने को गांव का मालिक ही समझता था। जब वह किसानों से बातें करता तब वे दीनता के साथ सिर झुका लेते और जब वह गुस्से में आता तो वे डर के मारे कांप उठते। उसकी शक्ल देखते ही भाग जाते। अगर वह किसी के गाल पर तमाचा मार देता तो वह आदमी चुप खड़ा रहता और सोचता कि यह मार आसमान से आ पड़ी है। अगर वह किसी को देखकर तनिक मुस्कराता तो सब लोग उस आदमी को बधाई देते।
ये गरीब लोग शेख अब्बास के सामने सिर झुकाते थे-इसलिए नहीं कि वे कमजोर थे और शेख ताकतवर था, बल्कि इसलिए कि वे कंगाल थे और उन्हें शेख की जरूरत थी, क्योंकि जिस भूमि में वे खेतीबाड़ी करते थे और जिन मकानों में रहते थे, वे सब शेख की जायदाद थी। जी-तोड़ मेहनत करने पर भी उन्हें इतना भी अनाज नहीं मिल पाता था, जो उन्हें भूख के गढ़ों से निकाल सके। अधिकतर किसान तो जाड़ा बीतने से पहले ही रोटी तक को मुहताज हो जाते थे। और एक-एक करके शेख के पास जाकर रोना-धोना शुरू कर देते, ताकि उससे एक दिनार या गेहूं की एक टोकरी कर्ज मिल सके। शेख उनकी मांग को खुशी से मंजूर कर लेता, क्योंकि वह जानता था कि फसल के समय एक दिनार और गेहूं की एक टोकरी की दो टोकरियां बन जायंगी। इस तरह वे शेख अब्बास के कर्ज के नीचे दबे हुए थे।
जाडे का मौसम आया। बर्फ गिरने लगी। देहात के लोग शेख अब्बास के गोदामों को अनाज से और मटकों को अंगूर के रस से भरकर घरों में बैठ गये।
रात हो गई थी। तूफानी हवा बर्फ से लदे बड़े-बड़े पहाड़ों से बर्फ को उड़ा-उड़ाकर नीचे फेंकने लगी।
इस भयानक रात में बाइस बरस का एक नवयुवक कजहिया के गिरजाघर से एक कठिन रास्ता पार कर शेख अब्बास के गांव को जा रहा था। कजहिया का गिरजा लेबनान का सबसे अधिक प्रसिद्ध और धनवान गिरजा है।
सर्दी नवयुवक के जोड़ों को ऐंठ रही थी। भूख और डर ने उसकी ताकत को खत्म कर दिया था। उसकी काली पोशाक बर्फ से ढकी हुई थी, मानो उसने कफन पहन रखा हो। वह आगे की ओर बढ़ता तो हवा ऐसे जोर से धक्का लगाती, मानो वह उसे जीवन के बंधन में देखना नहीं चाहती थी। वह बेचारा गिर पड़ता और फिर उठ जाता। नवयुवक चलता गया और मौत भी उसके पीछे-पीछे हो ली। अंत में उसकी सारी ताकत चुक गई। उसकी सुध-बुध कम होती गई। उसकी नसों का लहू जम गया और वह बर्फ पर गिर पड़ा।
मुंह में इस तरह कौर देने लगी जैसे मां अपने बेटे को खिलाती है। जब वह काफी खा चुका तो बोला, “आदमी के हाथों ने मुझे इस हालत में डाला, और आदमी के ही हाथों ने मुझे बरबादी से बचा लिया!”
राहील ने ममताभरी आवाज में पछा, “ऐ भाई, तम पर ऐसी क्या गजरी कि जिससे तुम्हें इस भयावनी रात में जोगियों के मठ को छोड़ना पडा?”
नौजवान ने आह भरकर कहा, “मैं मठ से जबरदस्ती निकाल दिया गया।” राहील ने डरी आवाज में पूछा-“निकाल दिया गया?”
“हां, मुझे मठ से निकाल दिया गया, क्योंकि मुझे दुःखियों और गरीबों का माल खाने से नफरत हो गई थी।
तब राहील ने प्यार से पूछा, “ऐ भाई, तुम्हारे मां-बाप कहां हैं?”
युवक ने दर्द भरी आवाज में उत्तर दिया, “मेरे न बाप हैं, न मां-बहन और न कोई ऐसी जगह, जहां मैं अपना सिर छिपा सकू।”
नौजवान ने अपना सिर उठाया और कहना शुरू किया, “सात साल की उम्र में ही मेरे मां-बाप गुजर गये। गांव का पादरी मुझे कजहिया के मठ में ले गया। वहां मुझे गायों का चरवाहा बनाया गया। जब मैं पंद्रह बरस का हुआ तब उन्होंने मुझे यह मोटी और काली पोशाक पहना दी और कहा, भगवान की कसम खाकर अहद करो कि तुम अपने आपको गरीब, हुक्म मानने और संयम के लिए निछावर कर दोगे। उनके कहने का मतलब ध्यान में आने से पहले ही मैंने उनके शब्दों को दुहराया। मेरा नाम खलील था और जब मैं जोगी बना तब उन्होंने मेरा नाम बिरादर मुबारक रख दिया; मगर उन्होंने मुझे अपना भाई न बनाया। वे बड़े अच्छे-अच्छे खाने खाते थे, मगर मुझे सखी रोटियां और बासी सब्जी खिलाते थे। मुझे यह बुरा लगता था और मैं उस पर सोचता था।
“आखिर एक दिन हिम्मत करके मैं मठ के जोगियों के पास गया और बोला, हम गरीबों और दुःखियों के दान से फायदा क्यों उठाते हैं? हम बेकार बैठकर क्यों ऐश उड़ाते हैं? आओ, इस मठ की यह बड़ी खेती उन गरीब देहातियों में बांट दें और उनका जो माल हम उनसे ले चुके हैं, उनकी जेबों में डाल दें। हम उन कमजोर लोगों की सेवा करें, जिन्होंने हमें ताकतवर बनाया है और उन गांवों की तरक्की करें, जिनके दान ने हमें धनवान बना दिया है।
जब मेरी बात खत्म हुई तो जोगियों में से एक आगे बढ़ा और दांत पीसकर बोला-‘ऐ मरियल आदमी, तेरी इतनी जुर्रत ।’ फिर दूसरा बोला, ‘शैतान, तू अभी इसका नतीजा भुगतेगा!
“इसके बाद उन्होंने बड़े पादरी से शिकायत की। उसने मुझे बुलाकर एक माह तक जेलखाने में रखने का हुक्म दिया। एक महीना मैं उस कब्र में पड़ा रहा, जहां मुझे रोशनी भी दिखाई नहीं दी। महीना बीत गया। मैं जेलखाने से बाहर निकला, मगर वहां की तकलीफें मेरी हिम्मत को पस्त नहीं कर सकीं। आज शाम को मैंने उन लोगों को इंजील से ये फिकरे पढ़ सुनाये-उसने एक समूह से, जो उसका यकीन पाने के लिए निकला था, कहा-‘ए सांप की औलादो, आने वाली आफत से डरो और संयम का मीठा फल पैदा करो। तुम अपने दिलों में कहते हो कि हम हजरत इब्राहीम की औलाद हैं; लेकिन मैं तुमसे कहता हूं कि भगवान इस पत्थर से भी इब्राहीम की संतान पैदा कर सकता है। और अब कुल्हाड़ा पेड़ की जड़ काट चुका है और जो पेड़ अच्छे फल नहीं देता उसे आग में जला दिया जाता है। लोगों ने पूछा, ‘अब हम क्या करें?’ उसने उत्तर दिया, जिसके पास कपड़े हैं, वह उन्हें उस आदमी को दे दे, जिसके पास नहीं हैं, और जिसके पास खाना है, वह उसे दे दे, जो भूखा है।’
“मेरे होठों से इन शब्दों का निकलना था कि एक ने मेरे मुंह पर बड़े जोर से तमाचा मारा; दूसरे ने मुझे पांव से ठोकरें मारी; तीसरे ने मेरे हाथ से इंजील छीन ली और चौथे ने बड़े पादरी को पुकारा।” बड़ा पादरी जल्दी से आया और जब उसने सारी बातें सुनीं तो उसकी आंखें लाल हो गईं। वह गुस्से से कांपने लगा और गरजती हुई आवाज में बोला, “इस बदमाश जोगी को पकड़ लो और मठ से निकाल दो, ताकि बाहर की आफतें इसे अच्छा सबक सिखा दें।”
“जोगियों ने मुझे तुरंत पकड़ लिया और मुझे मठ से बाहर धकेल दिया।
“इस तरह जोगियों और पादरियों ने मुझे मौत के मुंह में दे दिया, मगर बर्फ और आंधी के पीछे से एक ताकत ने मेरी पुकार को सुना और आपको मेरे पास भेजा, ताकि आप मुझे मरने से बचा लें।
लील की कहानी सुनकर राहील बोली, “भगवान जिसे सच्चाई के रास्ते में मदद देता है, उसे न जुल्म खत्म कर सकते हैं और न आंधी और बर्फ मार सकते हैं।”
मरियम ने आह भरकर कहा, “आंधी और बर्फ फूलों को बरबाद कर सकते हैं; लेकिन बीज नहीं मर सकते।”
इस हमदर्दी से खलील का पीला चेहरा चमक उठा। कुछ ही मिनट में उसकी आंखें मुंद गईं और वह इस तरह सो गया, जैसे बच्चा मां का दूध पीकर सो जाता है। राहील और मरियम भी अपने-अपने बिस्तरों पर जाकर सो गईं।
दो हफ्ते बीत गये। खलील ने तीन बार कोशिश की कि वह समुद्र के किनारे की राह ले, मगर राहील ने प्यार से उसे रोककर कहा, “देखो भाई, तुम अब कहीं मत जाओ, यहीं रहो; क्योंकि जो रोटियां दो आदमियों का पेट भरती हैं, वे तीन के लिए काफी होती _ हैं। भैया, हम गरीब जरूर हैं, मगर भगवान की दुआ से उसी तरह जीते हैं, जैसे दूसरे आदमी।”
मरियम भी अपनी खामोश आहों से अपना प्यार जाहिर करती थी।
एक दिन हिम्मत करके उसने खलील से कहा, “तुम इसी गांव में क्यों नहीं रहते? क्या यहां की जिंदगी दूर-दूर के उजाड़ परदेस से अच्छी नहीं है?”
उसके शब्दों की कोमलता और स्वर के संगीत से व्याकुल होकर खलील बोला, “इस गांव के लोग पसंद न करेंगे कि पादरियों के मठ से निकाला गया आदमी उनका पड़ोसी बने। अगर मैं इस गांव में रह गया और मैंने यहां के लोगों से कहा, आओ भाइयो, अपनी मर्जी के मुताबिक प्रार्थना करें, न कि इस तरह जिस तरह जोगी और पादरी चाहते हैं, क्योंकि भगवान की यह मर्जी नहीं हो सकती कि वह ऐसे मूों का देवता बने, जो ईश्वर को छोड़ औरों के पीछे चलते हैं तो ये लोग मुझे काफिर ठहरायेंगे और कहेंगे कि यह आदमी उस हुकूमत से बैर रखता है, जो भगवान ने पादरियों को दी है।
मैं इस गांव में एक बड़ा अच्छा फूल देखता हूं, जो कांटों में पड़ा है। क्या मैं इस फूल को छोड़कर जा सकता हूं? नहीं, कभी नहीं।”
मगर खलील की किस्मत ने उसे ज्यादा दिन तक चैन से नहीं रहने दिया।
उस गांव के मालिक शेख अब्बास की पादरियों से गहरी दोस्ती थी। एक दिन उस गांव का पादरी इलियास शेख अब्बास के पास गया और बोला, “पादरियों ने एक बदमाश बागी को मठ से निकाल दिया था। वह काफिर अब दो हफ्तों से इस गांव में आया हुआ है। और समआन की बेवा राहील के घर में रहता है। हमारा फर्ज है कि हम भी उसे अपने गांव से निकाल बाहर करें।”
अब्बास ने पूछा, “क्या हमारे लिए यह मुनासिब न होगा कि हम उसे यहीं रहने दें और अपने अंगूर के बागों का रखवाला या ढोरों का चरवाहा बना लें?”
पादरी बोला, “अगर यह आदमी काम करने वाला होता तो वे पादरी उसे क्यों निकाल देते, जिनकी खेती बहुत बड़ी है और जिनके पास बेशमार ढोर हैं?” और फिर उसने वह सारा किस्सा उसे सुनाया जो उसने मठ के पादरियों से सुना था। सुनकर शेख अब्बास गुस्से से लाल-पीला हो गया। उसने जोर से चिल्लाकर अपने नौकरों को आवाज दी और कहा, “बेवा राहील के घर में एक आदमी है, जिसने पादरियों का लिबास पहन रखा है। जाओ, उसकी मुश्के कसकर यहां ले आओ। और अगर वह औरत किसी तरह रुकावट डाले तो उसे भी गिरफ्तार कर लो और उसके सिर के बालों को पकड़कर उसे बर्फ में खींचते हुए ले आओ, क्योंकि बदमाश का मददगार भी बदमाश ही होता है।”
नौकर हुक्म बजा लाने के लिए तेजी से बाहर निकले।
राहील, मरियम और खलील एक चौकी के पास बैठे खाना खा रहे थे कि इतने में दरवाजा खुला और शेख अब्बास के नौकर अंदर आये। राहील डर गई और मरियम ने एक चीख मारी, मगर खलील खामोश था, क्योंकि उसने उनके आने का सबब जान लिया था। एक नौकर आगे बढ़ा और खलील के कंधे पर हाथ रखकर बोला, “पादरियों के मठ से निकाले हुए नौजवान तुम्ही हो?”
खलील ने जवाब दिया, “जी हां, मैं ही हूं। क्यों, क्या चाहते हो?”
नौकर ने कहा, “हम चाहते हैं कि तुम्हारी मुश्के कसकर तुम्हें शेख अब्बास के मकान पर ले चलें और अगर तुम कुछ आनाकानी करो तो तुम्हें मरे हुए बकरे की तरह घसीटते हुए ले जायें।”
राहील का चेहरा पीला पड़ गया। उसने कांपती आवाज में पूछा, “इसका क्या कसूर है, जिसकी वजह से शेख अब्बास ने इसे बुलाया है?”
नौकर मारे गुस्से के चिल्ला उठा, “क्या इस गांव में कोई ऐसी औरत भी हो सकती है, जो शेख की इच्छा के खिलाफ जाय?”
यह कहकर उसने खलील की मुश्के कसने को एक मोटी रस्सी निकाली। खलील उठकर खड़ा हो गया। उसके होठों पर मुस्कराहट थी। उसने उन नौकरों से कहा, “दोस्तो, मुझे तुम्हारी हालत पर तरस आता है। तुम एक जबरदस्त आदमी के हाथ में अंधे औजार की तरह हो। वह तुम पर जुल्म करता है और तुम्हारे हाथों से कमजोरों को बरबाद कराता है। तुम्हारी लाचारी पर मुझे दुख है। आओ, मेरी मुश्के कस लो और जो जी में आये करो।”
नौकरों ने ये बातें सुनीं तो उनकी आंखें पथरा गईं। मगर फौरन उन्हें याद आ गया कि वे किस काम के लिए वहां आये हैं। आगे बढ़कर उन्होंने खलील की मुश्के कस लीं और उसे पकड़े हुए चुपचाप बाहर निकले। राहील और मरियम भी उनके पीछे-पीछे चल दी-उसी तरह जिस तरह यरूशलम की लड़कियां हजरत ईसामसीह के पीछे हो ली थीं, जबकि उन्हें क्रूस पर लटकाने के लिए ले जाया जा रहा था।
देहात में छोटी-बड़ी खबरें बहुत जल्दी फैल जाती हैं। शेख अब्बास के आदमियों ने ज्योंही खलील को गिरफ्तार किया, यह खबर गांव के लोगों में छूत की बीमारी की तरह
फैल गई। वे अपने-अपने मकान छोड़कर बिखरे हुए सिपाहियों की तरह हर तरफ से तेजी के साथ भागे और जैसे ही नवयुवक को शेख के मकान में लाया गया, वह बड़ा घर स्त्रियों, पुरुषों और बच्चों से भर गया। सब के सब उस काफिर की ओर आश्चर्य से देख रहे थे, । जिसे पादरियों ने मठ से निकाल दिया था।
शेख अब्बास एक ऊंची गद्दी पर विराजमान था और उसके पास पादरी इलियास बैठा था। सामने किसान व नौकर-चाकर खड़े थे और बीच में खलील, जिसकी मुश्के कसी हुई थीं, इस तरह अकड़ कर खड़ा था, जैसे गढ़ों के बीच में ऊंचा टीला।
शेख अब्बास ने खलील की ओर देखकर पूछा, “ए शख्स, तेरा नाम क्या है?” खलील ने उत्तर दिया, “मुझे खलील कहते हैं।” शेख ने पूछा, “तुम्हारा खानदान कौन-सा है? और तुम कहां के रहने वाले हो?”
खलील ने उन किसानों की ओर देखा, जो उसकी तरफ नफरत से देख रहे थे और कहा, “ये दुःखी गरीब लोग ही मेरा खानदान हैं और ये ही फैले हुए गांव मेरी मातृभूमि है।”
शेख अब्बास मुस्कराया और बोला, “तुम जिन लोगों के साथ अपना रिश्ता जोड़ते । हो, वे तुम्हें सजा दिलाना चाहते हैं और जिन गांवों को तुम अपनी मातृभूमि बताते हो, वे नहीं चाहते कि तुम यहां चैन से रहो।”
खलील ने व्याकुल होकर उत्तर दिया, “नासमझ जांतियां अपने शीलवान बेटों को पकड़कर जुल्म करने वालों की बेरहमी के हवाले कर देती हैं और बेइज्जती तथा दुर्दशा के
के सिवा कुछ नहीं। क्या तुमने ईसामसीह का वह वचन सुना है, जो उन्होंने अपने शिष्यों से कहा था- ‘जो कछ दो, मफ्त दो और जो कछ लो, मफ्त लो। घरों में सोना, चांदी और तांबा जमा न करो।’ फिर ये पादरी और जोगी किस शिक्षा के अनुसार अपनी प्रार्थनाओं को चांदी-सोने के बदले में बेचते हैं?” .
खलील का चेहरा चमक उठा। उसने जान लिया कि सुनने वालों के हृदय में उनकी आत्मा जग रही है। उसकी आवाज पहले से ज्यादा ऊंची हो गई। वह कहने लगा, “मेरे भाइयो, तुम अल्लाह के बेटे होकर यह कैसे कबूल करते हो कि आदमी की गुलामी मंजूर की जाय? ईसामसीह ने तुम्हें ‘भाई’ कहकर पुकारा था, फिर तुम अपने को शेख अब्बास के गुलाम क्यों कहलाते हो?…आज तुमने जो बातें मुझसे सुनीं, उन्हीं बातों के सबब से गिरजा का पादरी मुझे सूली पर चढ़ा दे तो मुझे खुशी ही होगी।”
खलील की बातों ने लोगों के दिलों पर जादू का-सा असर किया। उनकी आंखों से पर्दे इस तरह हट गये जैसे एक अंधा आदमी अचानक देखने लग जाय। मगर शेख अब्बास और पादरी इलियास गुस्से के मारे कांप रहे थे। वे चाहते थे कि खलील को चुप करा दें; पर ऐसा कर नहीं सकते थे। आखिर शेख अब्बास खड़ा हो गया। उसने त्यौरी चढ़ाकर कठोर आवाज में लोगों से कहा, “तुम्हें हो क्या गया है? क्या तुम सुन नहीं रहे हो? क्या तुम्हारे शरीर सुन्न हो गये हैं कि तुम इस काफिर को पकड़ने लायक नहीं रहे?”
इतना कहकर शेख ने तलवार खींच ली और वह खलील की ओर झपटा ताकि उस पर वार करे, मगर इतने में वहां जमा हुए लोगों में से एक ताकतवर आदमी आगे बढ़ा और बोला, “ए सरदार! अपनी तलवार को म्यान में डालो, वरना तलवार का बदला तलवार से लिया जायगा।”
शेख कांपने लगा। उसके हाथ से तलवार गिर गई। उसने चिल्लाकर कहा, “क्या । एक कमजोर नौकर ईश्वर के समान अपने मालिक को रोक सकता है?”
उस आदमी ने जवाब दिया, “ईमानदार नौकर बदमाशी और जुल्म में अपने मालिक का मददगार नहीं होता।”
अब राहील को भी बोलने की हिम्मत हो गई। वह आगे बढ़ी और बोली, “इस आदमी ने अपनी बातों से हमारा ही दिल खोलकर रख दिया है। इसलिए अब जो आदमी बदमाशी करेगा वह सबका दुश्मन होगा।”
शेख ने दांत पीसते हुए कहा, “तू भी विद्रोह करती है, ए औरत! क्या तू भूल गई कि आज से पांच बरस पहले जब तेरे शौहर ने मुझसे बगावत की थी तो उसका क्या नतीजा हुआ था?”
यह सुनकर राहील को बहुत गुस्सा आया और गुस्से के मारे वह कांपने लगी। उसने लोगों की तरफ देखकर फरियाद की, “सुन रहे हैं आप? यह हत्यारा गुस्से में आकर अपने गुनाह को कबूल कर रहा है। मेरे पति के हत्यारे का पता उस वक्त नहीं चल सका, क्योंकि वह तो दीवारों के पीछे छिपा हुआ था। भगवान ने अचानक हमें वह हत्यारा दिखा दिया है, जिसने मुझे बेवा बनाया।”
राहील की इस बात से उस कमरे में सन्नाटा-सा छा गया। इतने में पादरी इलियास उठा और उसने कांपती हुई आवाज में नौकरों को हुक्म दिया, “इस औरत को गिरफ्तार कर लो, जो तुम्हारे मालिक पर झूठा इलजाम लगा रही है और इसे काफिर खलील के साथ कैदखाने में डाल दो। जो आदमी ऐसा करने से तुम्हें रोकेगा, वह भी इनके अपराध में शामिल समझा जायेगा और उनकी तरह उसे भी पाक गिरजा से निकाल दिया जायेगा।”
लेकिन नौकर चुप रहे। उनके जमींदार ने कहा, “हमने शेख की नौकरी रोटी के टुकड़े के लिए की थी, पर हम उसके गुलाम नहीं हैं।” इतना कहकर उसने अपनी वर्दी उतारकर शेख अब्बास के सामने फेंक दी। दूसरे नौकरों ने भी वैसा ही किया और कहा, “अब हम इस खूनी आदमी की नौकरी नहीं कर सकते।” ..
पादरी इलियास ने जब यह हालत देखी तो वह समझ गया कि झूठी ताकत का जादू टूट चुका है। इसलिए वह उस घड़ी को कोसता हुआ मकान से बाहर चला गया, जब खलील उस गांव में आया था।
इसी समय एक आदमी आगे बढ़ा और उसने खलील की मुश्कें खोल दी और शेख अब्बास की ओर देखकर, जो कुर्सी पर पत्थर की तरह चुपचाप बैठा था, बोला, “इस नवयुवक ने हमारे अंधेरे दिलों को रोशन कर दिया है और इस बेवा ने हम पर ऐसा राज जाहिर कर दिया है, जो पांच साल से छिपा हुआ था। हम तुम्हें तुम्हारे हाल पर छोड़ते हैं। कुदरत खुद तुमसे बदला लेगी।”
अचानक स्त्रियों और पुरुषों की यह आवाज उस बड़े मकान में गूंज उठी-“आओ, हम इस मकान से भाग चलें, जिसकी दीवारों पर पाप और बुराइयां लिखी हुई हैं।”
एक ने कहा, “हमें वही करना चाहिए जो खलील हमें बताये, क्योंकि वह हमारी जरूरतों को जानता है और हमारे दिलों को समझता है।”
दूसरे ने कहा, “हम सुल्तान से प्रार्थना करें कि वह खलील को शेख अब्बास की जगह गांव का सरदार बना दे।”
जब हर तरफ से अलग-अलग आवाजें आने लगीं तो खलील ने अपना हाथ उठाकर लोगों को चुप कराया और कहा, “भाइयो, जल्दी न करो। मैं प्रेम के नाम पर तुमसे यह चाहता हूं कि तुम सुल्तान के पास न जाओ, क्योंकि वह इंसाफ नहीं करेगा और न इस बात की उम्मीद रखो कि मैं इस गांव का सरदार बनूंगा, क्योंकि ईमानदार सेवक कभी नहीं चाहता कि वह एक दिन के लिए भी बदमाश सरदार बने। अगर तुम मुझसे प्रेम करते हो तो मुझे आज्ञा दो कि मैं तुम्हारे बीच रहकर तुम्हारे सुख-दुख का साझीदार बनूं और तुम्हें खेतों के सुधार और सुखों का रास्ता दिखाऊं।”
यह कहकर खलील उस मकान से निकला। सब लोग उसके पीछे-पीछे हो लिये।
जब वे गिरजा के पास पहुंचे तो खलील एक पैगंबर की तरह वहां ठहर गया और लोगों से बोला, “भाइयो, आज रात हम अब्बास के घर पर इसलिए इकट्ठे हुए थे कि सुबह की रोशनी को देखें। वह रोशनी हमें दिखाई दी है। अब जाओ और अपने-अपने बिस्तरों पर जाकर सो जाओ।” और खलील, राहील और मरियम के पीछे-पीछे उनके मकान चला गया। लोग अपने-अपने घर चले गये।
दो महीने बीत गये। खलील हर रोज गांववालों को उनके अधिकार और कर्तव्य समझाता रहता। गांववाले उसकी बातें सुनकर सुख अनुभव करते और ख़ुशी- ख़ुशी अपनी खेती-बाड़ी का काम करते। इधर शेख अब्बास कुछ पागल-सा हो गया। वह अपने मकान में इस तरह घूमता-फिरता था, जैसे पिंजरे के अंदर चीता।
आखिर एक दिन वह मर गया। किसानों में उसकी मृत्यु के कारणों के संबंध में मतभेद था। कुछ कहते थे कि उनका दिमाग फिर गया था। कुछ का ख्याल था कि उसने जिंदगी से मायूस और दुःखी होकर जहर खा लिया, मगर जो स्त्रियां उसकी पत्नी को सांत्वना देने के लिए जाती थीं, वे वापस आकर बताती थीं कि शेख डर के मारे मर गया; क्योंकि राहील का मृत पति समआन आधी रात के समय खून में सने हुए कपड़ों में उसे दिखाई देता था।
खलील और मरियम के बीच जो मुहब्बत पैदा हो गई थी, उसकी जानकारी जब गांववालों को हुई तो उन्हें बड़ी खुशी हुई और उन्होंने उनकी शादी बड़ी धूमधाम से कर दी। अब खलील सचमुच उन्हीं में से एक बन गया था।
जब फसल की कटाई के दिन आये तो किसानों ने खेतों में जाकर अनाज इकट्ठा किया। चूंकि अब शेख अब्बास नहीं था, इसलिए किसानों ने अपने कोठे गेहूं, ज्वार और जैतून से भर लिये।
उन दिनों से लेकर आज तक उस गांव का हर आदमी सुख के साथ खेती-बाड़ी – करता है और आनंद से अपनी मेहनत से पैदा किये बाग के फलों को जमा करता है।
जमीन का मालिक वही है, जो उसमें खेती करता है।
आज इन घटनाओं को हुए आधी सदी बीत चुकी है। जब कोई बटोही उस रास्ते से गुजरता है तो वह गांव के लोगों की खूबियां देखकर दंग रह जाता है। वह देखता है कि मामूली झोंपड़ी की जगह सुंदर मकान बन गये हैं और उनके आस-पास हरे-भरे खेत और लहलहाते बाग बहुत शोभा देते हैं।
अगर शेख अब्बास का इतिहास पूछे तो गांव का आदमी टूटे हुए एक पत्थर के पास ले जायेगा, जिसके आसपास की दीवारें गिर चुकी हैं, और कहेगा, “यह है शेख अब्बास का आलीशान महल और यही है उसका इतिहास।” और अगर पूछे कि खलील का इतिहास क्या है तो वह अपना हाथ आकाश की ओर उठाकर कहेगा, “हमारा प्यारा खलील वहां रहता है, मगर उसकी कहानी हमारे पुरखों ने हमारे दिलों के पन्नों पर लिख रखी है, जिसे समय नहीं मिटा सकता।”