पिता इस्मान को लोग धार्मिक तथा आध्यात्मिक बातों के लिए अपना पथ-प्रदर्शक मानते थे, क्योंकि वे धर्म एवं अध्यात्मवाद के प्रकांड पंडित थे। कौन अपराध क्षम्य है अथवा कौन दंड देने योग्य, इसकी उन्हें पूरी जानकारी थी। स्वर्ग, नर्क और पाप-मोचन के रहस्यों से वे पूर्णतः परिचित थे।
उत्तरी लेबनान में पिता इस्मान का कार्य एक गांव से दूसरे गांव में घूम-घूमकर जन-साधारण को धार्मिक उपदेश देते हए, उन्हें आध्यात्मिक रोगों से मुक्त कराना और शैतान के भयानक जाल से बचाना था।
पिता इस्मान शैतान से अनवरत युद्ध ठाने रहते थे। लोगों की इस पुजारी में श्रद्धा थी और वे इनका बड़ा आदर करते थे। इनके उपदेशों को सोने-चांदी से खरीदते थे। हर फसल में वे उन्हें अपने खेतों के सुन्दरतम फल भेंट किया करते थे।
शरद् ऋतु की एक सन्ध्या को, जबकि पिता इस्मान एक एकान्त गांव की ओर घाटियों और पहाड़ियों को पार करते चले जा रहे थे, उन्होंने एक दर्दनाक चीत्कार सुनी, जो सड़क के किनारे की एक खाई में से आ रही थी। वे रुक गये और जिस ओर से आवाज आ रही थी, उधर देखने लगे।
उन्होंने देखा कि एक नंगा आदमी पृथ्वी पर पड़ा हुआ है और उसके सिर और छाती के गहरे घावों से रक्त की धारा बह रही है। वह करुण स्वर में सहायता के लिए प्रार्थना कर रहा है और कह रहा है, “मुझे बचाओ, मेरी सहायता करो, मुझ पर दया करो, मैं मर रहा हूं।”
पिता इस्मान व्यग्रता से उसे ताकने लगे और स्वयं अपने से बोले, “यह मनुष्य अवश्य कोई चोर है। सम्भवतः इसने रांह-चलतों को लूटने का प्रयास किया है; किन्तु असफल रहा है। किसी ने इसे घायल कर दिया और मुझे डर है कि यदि यह मर गया तो इसको मारने का अपराध मुझ पर ही थोप दिया जायेगा।”
इस प्रकार से स्थिति पर सोच-विचार कर पिता इस्मान आगे बढ़ चले। किन्तु मरने वाले मनुष्य ने पुकार कर उन्हें फिर रोक लिया, “कृपया मुझे छोड़कर न जाओ। मैं मर रहा हूं।”
इस पर पिता इस्मान ने फिर सोचा और यह सोच कर कि वे किसी की सहायता करने से इन्कार कर रहे हैं, उनका चेहरा पीला पड़ गया। उनके होंठ फड़कने लगे, किन्तु वह मन ही मन बोले, “जरूर ही यह उन पागलों में से एक है, जो कि निर्जन वन में निरुद्देश्य घूमा करते हैं, इसके घावों को देखकर तो मेरा हृदय भी कांप उठता है। मुझे क्या करना चाहिए? निस्सन्देह एक आध्यात्मिक चिकित्सक शारीरिक घावों की देख-रेख करने योग्य नहीं है।”
पिता इस्मान कुछ कदम आगे बढ़े तो उस अधमरे व्यक्ति ने एक कष्टदायक आह भरी, जिससे पत्थर का हृदय भी पिघल जाता! और वह हांफते-हांफते बोला, “मेरे पास आओ। आओ, क्योंकि एक अरसे से हम दोनों गहरे मित्र रहे हैं। तुम पिता इस्मान हो। अच्छे चरवाहे, और मैं न तो कोई चोर हूं और न पागल ही। पास आओ और मुझे इस एकान्त स्थान में न मरने दो। तब मैं बताऊंगा कि मैं कौन हूं।” –
पिता इस्मान इस व्यक्ति के थोड़ा पास आ गये और झुककर उसे देखने लगे; किन्तु उन्हें एक अजीब चेहरा दिखाई दिया, जिसकी आकृति नितान्त भिन्न थी। उन्हें उसमें बुद्धिमत्ता के साथ कपट, सुन्दरता के साथ कुरूपता तथा नम्रता के साथ दुष्टता दिखाई दी वे उलटे पैर तुरन्त लौट गये और पूछने लगे, “तुम कौन हो?”
क्षीण स्वर में मरने वाले मनुष्य ने कहा, “मुझसे डरो नहीं, ऐ पिता, क्योंकि बहुत समय से हम दोनों में मित्रता चली आयी है। मुझे खड़े होने में सहायता दो और पास के -किसी झरने पर ले जाकर मेरे घावों को अपने कपड़ों से धो दो।”
किन्तु पिता ने पूछा, “मुझे बताओ कि तुम कौन हो, क्योंकि मैं तुम्हें नहीं पहचानता और इतना भी याद नहीं कि तुम्हें कहीं देखा है।”
उस आदमी ने पीड़ित स्वर में उत्तर दिया, “तुम मुझे पहचानते हो। तुमने मुझे हजार बार देखा है और तुम मेरे बारे में नित्य बातचीत करते हो। मैं तुम्हें अपने जीवन से भी अधिक प्रिय हूं।”
पिता ने उसे झिड़क कर कहा, “तुम झूठे हो, पाखण्डी हो! एक मरने वाले मनुष्य को तो सत्य बोलना चाहिए। तुम्हारा पापी चेहरा मैंने अपने सारे जीवन में कभी नहीं देखा। मुझे बताओ कि तुम कौन हो, नहीं तो मैं तुम्हें यहीं तुम्हारे हाल पर छोड़ जाऊंगा।”
तब घायल आदमी जरा-सा हिला और उसने पुजारी की आंखों में झांका। उसके होंठों पर एक शैतानी मुस्कान फैल गयी और शान्त, गूढ़ तथा नम्र स्वर में वह फुसफुसाया, “मैं शैतान हूं।”
इस भयानक शब्द को सुनते ही पिता इस्मान ने एक उत्कट चीत्कार किया, जो दूर घाटी के अन्त तक गूंज उठा। तब उन्होंने देखा और अनुभव किया कि मरने वाले व्यक्ति का शरीर अपनी विचित्र वक्रता के साथ उस शैतान से मिलता है, जिसकी छवि गांव के गिरजे की दीवार पर टंगे हुए एक धार्मिक चित्र में अंकित है।
वह भयभीत हो उठे और यह कहते हुए चिल्लाने लगे, “ईश्वर ने मुझे तेरी नारकीय छवि दिखलायी है और वह भी ठीक तुझे घृणा करने के निमित्त ही। तेरा सदैव के लिए अन्त हो। चरवाहे को चाहिए कि वह मुर्दा भेड़ को अलग कर दे, जिससे वह दूसरी भेड़ों को रोगी न बना दे।”
शैतान ने उत्तर दिया, “ऐ पिता! जल्दी न करो और भागते हुए समय को व्यर्थ की बातों में न गंवाओ। आओ और इससे पहले कि जीवन मेरे शरीर को त्याग दे, मेरे घावों को भर दो।”
पिता ने कड़े स्वर में कहा, “उन हाथों को, जो नित्य ईश्वर की अर्चना करते हैं, -नरक के रहस्यों से गढ़े हुए एक शरीर को नहीं छूना चाहिए। तुझे युग-युग की जिह्वाओं और मानवता के होंठों ने अपराधी घोषित किया है। तुझे अवश्य मरना चाहिए; क्योंकि तू मनुष्यता का शत्रु है और सदाचार का अन्त करना ही तेरा स्पष्ट उद्देश्य है।”
शैतान बड़े कष्ट से थोड़ा हिला और एक कोहनी पर ऊपर उठकर बोला, “तुम नहीं जानते कि तुम क्या कह रहे हो। न तुम उस पाप को ही समझते हो, जो तुम स्वयं अपने ऊपर कर रहे हो। छोड़ो इसे, क्योंकि अब मैं अपनी कहानी सुनाऊंगा।
इस निर्जन घाटी में आज मैं अकेला घूम रहा था। जब मैं इस स्थान पर पहुंचा तो देवताओं के एक गिरोह ने ऊपर से उतरकर मुझ पर आक्रमण किया और मुझे बड़ी बेरहमी से मारा। यदि उनमें वह एक देवता न होता, जिसके पास चमकती दुधारी तलवार थी तो मैं उन्हें खदेड़ देता; किन्तु उस चमचमाती तलवार के विरोध के लिए मुझमें शक्ति नहीं थी।”
जरा देर के लिए शैतान चुप हो गया और अपने कांपते हाथ से वह पहलू के एक घाव को दबाने लगा। फिर आगे बोला, “हथियारों से लैस देवता जो शायद मीचेल था, एक चतुर तलवार चलाने वाला था। यदि मैं पृथ्वी पर न गिर गया होता और अपने मरने का बहाना बनाकर न पड़ा रहता तो अवश्य ही उसने मुझे मौत के घाट उतार दिया होता।”
आकाश की ओर देखते हुए हर्षित पिता बोले, “मीचेल का भला हो, जिसने मनुष्यता को उसके सबसे बड़े शत्रु से मुक्त किया है।”
किन्तु शैतान ने विरोध किया, “जितनी घृणा तुम अपने आपसे करते हो, उससे कम मैं मनुष्यता का तिरस्कार करता हूं; तुम मीचेल की पूजा कर रहे हो, जो तुम्हारे उद्धार के लिए भी नहीं आया।
“मेरी हार के समय तुम मेरी निन्दा कर रहे हो, यद्यपि मैं सदैव से और अभी भी तुम्हारी शान्ति और सुख का स्रोत हूं।
“तुम मुझे अपनी शुभकामनाएं नहीं देना चाहते और न मुझ पर दया ही करना चाहते हो; किन्तु तुम मेरे साये में ही जीवित रहते हो और फलते-फूलते हो।
“तुमने मेरे अस्तित्व को एक बहाना बताया है और अपनी जीवन-वृत्ति के लिए एक अस्त्र, और अपने कमों को न्यायोचित बताने के लिए तुम लोगों से मेरा नाम लेते फिरते हो।
“क्या मेरे भूतकाल ने भविष्य में मेरी आवश्यकता को प्रमाणित नहीं कर दिया क्या तुम समस्त आवश्यक धन संचित कर अपने लक्ष्य तक पहुंच चुके ? क्या तुम्हें यह ज्ञात हो गया है कि मेरी सत्ता का भय दिखाकर तुम अपने अनुयायियों से और अधिक सोना-चांदी प्राप्त नहीं कर सकते?
“क्या तुम्हें यह पता नहीं है कि यदि मेरा अन्त हो गया तो तुम भी भूखे मर जाओगे? यदि आज तुम मुझे मर जाने दोगे तो कल को तुम क्या करोगे? अगर मेरा नाम ही दुनिया से उठ गया तो तुम्हारी जीविका का क्या होगा?
“देखो, वर्षों से तुम गांव-गांव में घूमते फिरे हो और लोगों को चेतावनी देते आये हो कि वे मेरे जाल में न फंस जायं। वे तुम्हारे उपदेशों को अपने गरीब पैसे और खेतों की फसल से मोल लेते रहे हैं। फिर कल, जब वे जान जायंगे कि उनके दुष्ट शत्रु का अब कोई अस्तित्व नहीं है, वे तो तुमसे क्या मोल लेंगे? तुम्हारी जीविका का मेरे साथ ही अन्त हो जायेगा, क्योंकि लोग पाप करने से ही छुटकारा पा जायंगे।
“एक पुजारी होकर क्या तुम यह नहीं सोच पाते कि केवल शैतान के अस्तित्व ने ही उसके शत्रु मंदिर का निर्माण किया है? वह पुरातन विरोध ही एक ऐसा रहस्यमय हाथ है, जो कि निष्कपट लोगों की जेबों में से सोना-चांदी निकालकर उपदेशकों और महंतों की तिजोरियों में संचित करता है।
“तुम किस प्रकार मुझे यहां मरता हुआ छोड़ सकते हो, जबकि तुम जानते हो कि. निश्चय ही ऐसी दशा में तुम अपनी प्रतिष्ठा, अपना मन्दिर, अपना घर और अपनी जीविका -खो दोगे?”
शैतान ने कुछ देर के लिए मुंह बंद कर लिया और उसकी आर्द्रता अब पूर्ण स्वतन्त्रता में परिणत हो गई। फिर वह बोला, “तुम गर्व से चूर हो, किन्तु नासमझ भी हो। मैं तुम्हें ‘विश्वास’ का इतिहास सुनाऊंगा और उसमें तुम उस सत्य को पाओगे, जो हम दोनों के अस्तित्व को संयुक्त करता है और मेरे अस्तित्व को तुम्हारे अन्तःकरण से बांध देता है।
“समय के आरम्भ के पहले पहर में आदमी सर्य के चेहरे के सामने खड़ा हो गया और उसने अपनी बाहें फैला दीं। तब पहली बार चिल्लाया, ‘आकाश के पीछे एक महान, स्नेहमय और उदार ईश्वर वास करता है।’
जब आदमी ने उस बड़े वृत्त की ओर पीठ फेर ली तो उसे अपनी परछाईं पृथ्वी पर दिखाई दी। वह चिल्ला उठा, ‘पृथ्वी की गहराइयों में एक शैतान रहता है, जो दुष्टता को प्यार करता है।।
“और वह आदमी अपने-आपसे कानाफूसी करता हुआ अपनी गुफा की ओर चल दिया, ‘मैं दो बलशाली शक्तियों के बीच हं। एक वह, जिसकी मझे शरण लेनी चाहिए और दूसरी वह, जिसके विरुद्ध मुझे युद्ध करना होगा।
“और सदियां जुलूस बना कर निकल गईं, लेकिन मनुष्य दो शक्तियों के बीच डटा रहा-एक वह, जिसकी वह अर्चना करता था, क्योंकि इसी में उसकी उन्नति थी और दूसरी वह, जिसकी निन्दा करता था, क्योंकि वह उसे भयभीत करती थी।
“किन्तु उसे कभी यह नहीं मालूम हुआ कि अर्चना अथवा निन्दा का अर्थ क्या है? वह तो बस दोनों के मध्य में स्थित है, एक ऐसे वृक्ष के समान, जो ग्रीष्म के, जबकि वह खिलता है और शीत के, जबकि वह मुरझा जाता है, बीच खड़ा है।
“जब मनुष्य ने सभ्यता का उदय होते देखा, जैसा कि मनुष्य समझते हैं, परिवार एक इकाई के रूप में अस्तित्व में आया। फिर वर्ग बने, फिर मजदूरी योग्यता और प्रवृत्ति के अनुसार बांट दी गई। एक जाति खेती करने लगी, दूसरी मकान बनाने लगी, कुछ कपड़े बुनने या अन्य शिकार करने लगे।
“इसके बाद भविष्यवक्ता ने अपना रूप दिखाया और यह सर्वप्रथम जीविका थी, जो ऐसे लोगों ने अंगीकार की, जिनको दुनिया की किसी भी जरूरी चीज की आवश्यकता नहीं थी।”
फिर कुछ देर के लिए शैतान खामोश हो गया। तब वह एकबारगी हंस पड़ा और उसके प्रमोद की गूंज निर्जन घाटी में दूर तक फैल गई; किन्तु उसकी हंसी ने उसे उसके जख्मों की याद दिलाई और दर्द के कारण एक हाथ उसने अपने जख्मों पर रख लिया। अब वह अपने को स्थिर कर बोला, “तो ज्योतिष की उत्पत्ति हुई और पृथ्वी पर इसकी उन्नति एक अनोखे ढंग से होने लगी।
“प्रथम जाति में एक ला-विस नाम का मनष्य था। मैं नहीं जानता कि उसके नाम की उत्पत्ति कहां से हुई। वह बुद्धिमान था; किन्तु बहुत ही निरुद्योगी। खेत पर काम करने, झोंपड़े बनाने, गाय-बैल पालने या ऐसे किसी कार्य से वह घृणा करता था, जिसमें कि शारीरिक परिश्रम की आवश्यकता पड़े, और चूंकि इन दिनों रोटी पाने का सिवा कड़ी मेहनत के कोई दूसरा उपाय नहीं था, ला-विस को अनेक रातें खाली पेट ही काटनी पड़ती थीं।
“गर्मियों की एक रात को, जबकि जाति के सब लोग गिरोह के सरदार की झोपड़ी को चारों ओर से घेरे खड़े थे और दिन की कार्रवाही पर चर्चा कर रहे थे और सोने के समय की बाट जो रहे थे, एक आदमी हठात् अपने पैरों पर उठ खड़ा हुआ और चंद्रमा की ओर इशारा करता हुआ चिल्लाया, ‘रात्रि देव की ओर देखो! उसके चेहरे पर अंधकार छा गया है और उसकी सुन्दरता समाप्त हो गई है। वह एक ऐसे काले पत्थर के रूप में बदल गया है, जो आकाश की छत से लटका हुआ है।’
“सभी लोगों ने चन्द्रमा की ओर देखा। वे चिल्ला पड़े और मारे डर के बेदम से हो गये, मानो अन्धकार के हाथों ने उनके हृदय को दबोच लिया हो, क्योंकि उन्होंने देखा कि रात्रि-देव काली गेंद के रूप में बदल गया है, जिसके कारण पृथ्वी की चमक मिट गई है और पहाड़ियां तथा घाटियां उनकी आंखों के सामने ही काले आवरण के पीछे अन्तर्धान हो गई “इसी समय ला-विस जिसने इससे पहले चन्द्र-ग्रहण देखा था और उसके मामूली से कारण को समझा था, अवसर से पूरा-पूरा लाभ उठाने के लिए आगे बढ़ा।
“वह गिरोह के बीच खड़ा हो गया और अपने हाथों को आकाश की ओर उठाकर भरी हुई आवाज में बोला, ‘नीचे झुक जाओ और प्रार्थना करो, क्योंकि अन्धकार के दुष्ट-देव और उज्ज्वल रजनी-देव में युद्ध ठन गया है। यदि दष्ट-देव जीत गया तो हम सब लोग भी समाप्त हो जायंगे; किन्तु यदि रजनी-देव की विजय हुई तो हम सब लोग जीवित रहेंगे। अब प्रार्थना करो। अपने चेहरों को मिट्टी से ढक लो। अपनी आंखें बन्द कर लो और अपने सिरों को आकाश की ओर न उठाओ, क्योंकि जो भी दोनों देवताओं के युद्ध को देखेगा, वह ज्योतिहीन तथा बुद्धिहीन हो जायेगा और जीवन-पर्यन्त अन्धा तथा पागल बना रहेगा। अपने मस्तक नीचे झुकाओ और अपने हृदय की पूर्ण भक्ति से अपने उस शत्रु के विरोध में, जोकि हम सबका प्राणघातक शत्रु है, रात्रि-देव को सबल बनाओ।
“और ला-विस इसी प्रकार की बातें करता रहा और अपने भाषण में उसने स्वयं अपने द्वारा ही रचित अनेक ऐसे गुप्त शब्दों का प्रयोग किया है, जो उन लोगों ने कभी न सुने थे।
“इस धूर्तता के बाद, जब चन्द्रमा अपनी पूर्व उज्ज्वलता में परिणत हो गया तो ला-विस ने पहले से भी अधिक अपनी आवाज को ऊंचा किया और प्रभावशाली स्वर में बोला, ‘अब ऊपर उठो और देखो कि रात्रि-देव ने अपने दुष्ट शत्रु पर विजय पा ली है। सितारों के बीच वह अपनी यात्रा पर अग्रसर हुआ। तुम्हें यह जानना चाहिए कि अपनी प्रार्थनाओं द्वारा तुमने उसे अंधकार के दैत्य को जीतने में सहायता दी है। वह अब बहुत प्रसन्न है और सदैव से भी अधिक उज्ज्वल है।
“सभी लोग उठ खड़े हुए और चन्द्रमा को देखने लगे, जो फिर पूर्णरूप से प्रकाशित – था। उनका भय समाप्त हो गया और उनकी व्याकुलता आनन्द में परिवर्तित हो गई। वे नाचने गाने लगे और अपनी भारी छड़ी से लोहे की चादरों पर आघात करने लगे। इसी प्रकार उपत्यकाएं शोर-गुल से भर उठीं।
“उसी रात को गिरोह के सरदार ने ला-विस को निमन्त्रित किया और कहा, ‘तुमने ऐसा कार्य किया है, जिसे आज तक कोई नहीं कर पाया। तुमने एक गुप्त भेद की जानकारी का दर्शन किया है, जिसे हममें से कोई भी समझ पाने में असमर्थ है। जैसा कि मेरी प्रजा चाहती है, आज से तुम सारे गिरोह में, मेरे बाद, सबसे उच्च पदाधिकारी होगे। मैं सबसे अधिक बलवान हूं और तुम सबसे बुद्धिमान और बहुत ही शिक्षित पुरुष हो। तुम हमारे और देवताओं के बीच मध्यस्त हो। उन देवों की इच्छाओं और उनके कार्यों की व्याख्या तुम्हें करनी होगी और तुम हम लोगों को ऐसी बातें सिखाओगे, जो उनकी शुभ कामनाएं तथा स्नेह पाने के लिए आवश्यक हैं।’ – “और ला-विस ने चतुराई से विश्वास दिलाया, ‘मनुष्य का ईश्वर जो कुछ भी मेरे दिव्य सपनों में मुझसे कहेगा, वह सभी जाग्रत अवस्था में तुम्हें बता दिया जायेगा, और तुम विश्वास रखो कि मैं तुम्हारे और ईश्वर के बीच में प्रत्यक्ष रूप से कार्य करूंगा।’
“सरदार को विश्वास हुआ और ला-विस को दो घोड़े, सात गायें, सत्तर भेड़ और सत्तर मेमने भेंट किये। फिर वह ला-विस से इस प्रकार बोला, ‘गिरोह के आदमी तुम्हारे लिए एक मजबूत मकान बना देंगे और हर फसल के समय अन्न का एक भाग तुम्हें भेंट किया करेंगे, जिससे कि तुम सम्मानित और माननीय गुरू की भांति रह सको।
“ला-विस खड़ा हो गया और जाने को तैयार ही था कि सरदार ने रोक लिया और
– कहा, वह कौन है और कहां है, जिसे तुम मनुष्य का ईश्वर कहते हो? और यह साहसी देव -कौन है, जो कि उज्ज्वल रात्रि के देवता से युद्ध करता है? पहले तो कभी हमने उसके बारे में नहीं सोचा था।
ला-विस ने अपने माथे को खुजाया और उत्तर दिया, ‘मेरे माननीय सरदार! प्राचीन -समय में, मनुष्य के जन्म से पहले, सभी देवता एक साथ शान्तिपूर्वक, सितारों की विस्तीर्णता के पीछे, ऊपर के संसार में वास करते थे। देवताओं का देवता प्रभु उनका पिता था। प्रभु उन बातों को जानते थे, जिसे देवता नहीं जानते थे। प्रभु ऐसे कार्य करते थे, जो देवता लोग करने में असमर्थ थे। उन्होंने ऐसे दिव्य रहस्य, जो नित्य के विधान के बाहर के थे, केवल अपने पास तक सीमित रखे थे। बारहवें युग के सातवें वर्ष में बाहतार की आत्मा ने जो महान ईश्वर से घृणा करता था, विद्रोह कर दिया और अपने पिता के सम्मुख खड़े होकर बोला, ‘सभी जीवधारियों पर आप स्वयं अपनी ही महान सत्ता का अधिकार क्यों जमाये रखते हैं और हमसे सृष्टि के विधान को क्यों छिपाये हुए हैं? क्या हम आपके वे बच्चे नहीं, जो केवल आपमें ही विश्वास रखते हैं और आपके अनन्त ज्ञान और महान सत्ता के भागीदार हैं?’
“देवताओं के देवता इस पर ऋद्ध हो गये और बोले, ‘प्रारम्भिक अधिकार और महान सत्ता तथा आवश्यक रहस्य तो मैं अपने पास सुरक्षित रखूगा ही, क्योंकि मैं ही आदि और में ही अन्त हूं।’
“और बाहतार ने उत्तर में कहा, जब तक आप मुझे अपनी सत्ता और अधिकार में भागीदार नहीं बनायेंगे, मैं, मेरे बच्चे और मेरे बच्चों के बच्चे आपके विरुद्ध विद्रोह करेंगे।’
“तब देवताओं के देवता अनन्त आकाश में अपने सिंहासन पर खड़े हो गये और उन्होंने अपनी तलवार म्यान से निकाल ली तथा सूर्य को ढाल के रूप में हाथ में थाम लिया। एक ऐसी आवाज में, जिसने सृष्टि के समस्त कोनों को हिला दिया, वह बोले, ‘नीचे गिर, दुष्ट विद्रोही, उस नीचे के शोकयुक्त संसार में, जहा अन्धकार और दुभाग्य का राज्य है, वहां तू अकेला रहेगा और निरुद्देश्य घूमता फिरेगा, जब तक सूर्य राख के ढेर में और सितारे छितरी हुई किरणों में परिवर्तित न हो जायंगे।’
“उसी क्षण बाहतार ऊपरी संसार से गिरकर नीचे की दुनिया में जा पड़ा, जहां कि समस्त अधर्मी आत्माएं लड़ती-झगड़ती रहती हैं।
“तब बाहतार ने जीवन के रहस्यों की शपथ ली कि ‘वह अपने पिता और भाइयों से युद्ध करेगा और प्रत्येक आत्मा को, जो उससे प्रेम करेगी, अपने फन्दे में फंसायेगा।’
“जैसे ही सरदार ने यह सुना, उसके माथे पर सलवट पड़ गई और उसका चेहरा भय से पीला पड़ गया। उसने कठिनाई से पूछा, ‘तब पापी देवता का नाम बाहतार है?”
“और ला-विस ने उत्तर दिया, ‘उसका नाम बाहतार था, जब तक वह ऊपर के संसार में था; किन्तु जब वह नीचे की दुनिया में आ गया तो उसने बड़ी सफलता से अपने भिन्न-भिन्न नाम रखे, बालजाबूल, शैतानेल, बलिआल, जमील, आहरीमान, मारा, अबदौन, डैविल, अन्त में शैतान, जो कि बहुत विख्यात है।’
“सरदार ने ‘शैतान’ शब्द को कंपित स्वर में कई बार दोहराया, उसके मुख से एक ऐसी आवाज निकल रही थी, जो तेज हवा के चलने पर सूखी टहनियों की खड़खड़ाहट से उत्पन्न होती है। तब उसने कहा, ‘शैतान आदमी से भी उतनी ही घृणा क्यों करता है, जितनी कि ईश्वर से?”
“और ला-विस ने शीघ्रता से उत्तर दिया, ‘वह मनुष्य से इसलिए घृणा करता है, क्योंकि वे भी शैतान के भाई-बहन की सन्तान ही हैं।”
“सरदार ने प्रश्न किया, ‘तब शैतान मनुष्य का चाचा है?”
“ला-विस ने उत्तर दिया, ‘हां! माननीय सरदार! किन्तु वह उनका सबसे बड़ा शत्रु है, जो उनके दिनों को दुःख एवं रात्रियों को भयानक स्वप्नों से भर देता है। यह वह शक्ति है, जो कि तूफान को उन मनुष्यों के घरों की ओर भेजती है और उनके खेतों पर दुर्भिक्ष लाती है तथा उनको और उनके जानवरों को रोग-ग्रस्त बनाती है। वह एक अधर्मी, किन्तु शक्तिशाली देव है। वह बड़ा ही दुष्ट है, और जब कि हम दुखी होते हैं, वह हंसता है और यदि हम प्रसन्न होते हैं तो वह दुःख मनाता है। तुम सबको मेरी योग्यता की सहायता से उसकी ठीक से जांच पड़ताल करनी चाहिए जिससे तुम लोग उसके जाल में न फंस जाओ और उसके दुष्ट कर्मों से दूर रह सको।
“सरदार ने अपना सिर मोटी छड़ी पर झुका दिया और फुसफुसाया, ‘उस अद्भुत शक्ति का रहस्य आज मुझे ज्ञात हुआ है, जो तूफान को हमारे घरों की ओर भेजती है तथा हम पर और हमारे जानवरों पर महामारी फैलाती है। सब लोगों को यह समझ लेना चाहिए, जो मैं अब समझा हूं और हमें ला-विस को धन्यवाद देना चाहिए और उसका आदर-सत्कार करना चाहिए। क्योंकि उसने हमारे सबसे बड़े शत्रु के गुप्त रहस्यों को हम पर प्रकट किया है और इस प्रकार हमें अधर्म की राह पर चलने से बचाया है।’
“और ला-विस गिरोह के सरदार को वहीं छोड़कर अपने झोंपड़े में चला गया। उसे अपनी समझ-बूझ पर गर्व था और खुशी की तरंग में वह झूम रहा था। प्रथम बार उस दिन
ला-विस के सिवा सरदार और सारे गिरोह ने वह रात विकराल देवों से घिरे अपनी शय्याओं । पर, भयानक दृश्यों और व्याकुल कर देने वाले सपनों को देख-देखकर ऊंघते काटी। “थोड़ी देर के लिए शैतान चुप हो गया तब पिता इस्मान ने व्यग्रभाव से उसकी ओर देखा और पिता के होंठों पर मौत के जैसी रूखी मुस्कान फैल गई। शैतान फिर बोला, “इस प्रकार पृथ्वी पर भविष्यवाणी का जन्म हुआ। अतएव मेरा अस्तित्व ही उसके जन्म का कारण बना।”
“ला-विस प्रथम मनुष्य था, जिसने मेरी पैशाचिकता को एक व्यवसाय बनाया। ला-विस की मृत्यु के उपरान्त यह वृत्ति उसके बच्चों ने अपनायी और इस व्यवसाय की वृद्धि निरन्तर होती गई, यहां तक कि यह एक पूर्ण एवं पवित्र धन्धा बन गया और उन लोगों ने इसे अपनाया, जिनके मस्तिष्क में ज्ञान का भण्डार है तथा जिनकी आत्माएं श्रेष्ठ, हृदय स्वच्छ एवं कल्पनाशक्ति अनन्त है।
“बेबीलोन (बाबुल) में लोग एक पुजारी की पूजा सात बार झुक कर करते हैं, जो – मेरे साथ अपने भजनों द्वारा युद्ध ठाने हए हैं।”
“नाइनेवेह (नेनवा) में वे एक मनुष्य को, जिसका कहना है कि उसने मेरे आन्तरिक – रहस्यों को जान लिया है, ईश्वर और मेरे बीच एक सुनहरी कड़ी मानते हैं।”
“तिब्बत में वे एक मनुष्य को, जो मेरे साथ एक बार अपनी शक्ति आजमा चुका है, सूर्य और चन्द्रमा के पुत्र के नाम से पुकारते हैं।”
“बाइबल्स में ईफेसस और एंटियोक ने अपने बच्चों का जीवन मेरे विरोधी पर बलिदान कर दिया।”
“और यरुशलम तथा रोम में लोगों ने अपने जीवन को उनके हाथों सौंप दिया, जो मुझसे घृणा करते हैं और अपनी सम्पूर्ण शक्ति द्वारा मुझसे युद्ध में लगे हुए हैं।”
सूर्य के साये के नीचे प्रत्येक नगर में मेरा नाम धार्मिक शिक्षा, कला और दर्शन का केन्द्र है। यदि मैं न होता तो मन्दिर न बनाये जाते, मीनारों और विशाल धार्मिक भवनों का निर्माण न हुआ होता।
“मैं वह साहस दूं, जो मनुष्य में दृढ़ निष्ठा पैदा करता है। “मैं वह स्रोत हूं, जोकि भावनाओं की अपूर्वता को उकसाता है।”
“मैं एक ऐसा हाथ हूं, जो आदमी के हाथों में गति लाता है।”
“मैं शैतान हूं, अजर, अमर! मैं शैतान हूं, जिसके साथ लोग इसलिए युद्ध करते हैं कि जीवित रह सकें। यदि वे मुझसे युद्ध करना बन्द कर दें तो आलस्य उनके मस्तिष्क, हृदय और आत्मा के स्पन्दन को बन्द कर देगा और इस प्रकार उनकी अत्यधिक शक्ति के बीच अद्भुत असुविधाएं आ खड़ी होंगी।”
“मैं एक मूक और क्रुद्ध तूफान हूं, जो पुरुष के मस्तिष्क और नारी के हृदय को झझकोर डालता है और मुझसे भयभीत हो वे मुझे दण्ड दिलाने के हेतु मन्दिरों एवं धर्म मठों को भागे जाते हैं अथवा मेरी प्रसन्नता के लिए, बुरे स्थान में जाकर मेरी इच्छा के सम्मुख आत्म-समर्पण कर देते हैं।”
“संन्यासी जो रात्रि की नीरवता में, मुझे अपनी शय्या से दूर रखने के लिए, ईश्वर से प्रार्थना करता है, एक ऐसी वेश्या के समान है, जो मुझे अपने शयन-कक्ष में निमंत्रित करती है।”
“मैं शैतान हूं, अजर, अमर।”
“भय की नींव पर खड़े धर्म-मठों का मैं ही निर्माता हूं। विषय-भोग तथा आनन्द की लालसा की नींव पर मैं ही मदिरालय एवं वेश्यालय का निर्माण करता हूँ।”
“यदि मैं न रहूं तो विश्व में भय और आनन्द का अन्त हो जायेगा और इनके लोप हो जाने से मनुष्य के हृदय में आशाएं एवं आकांक्षाएं भी न रहेंगी। तब जीवन नीरस, ठण्ड और खोखला हो जायेगा, मानों टूटे हुए तारों का सितार हो।”
“मैं अमर शैतान हूं।”
“झूठ, अपयश, विश्वासघात, विडम्बना और वंचना के लिए मैं प्रोत्साहन हूं और यदि इन तत्वों का विश्व से बहिष्कार कर दिया जाय तो मानव-समाज एक निर्जन क्षेत्र-मात्र रह जायेगा, जिसमें धर्म के कांटों के अतिरिक्त कुछ भी पनप न सकेगा।”
“मैं अमर शैतान हूं।”
“मैं पाप का जन्मदाता हूं और यदि पाप ही न रहेगा तो उसके साथ ही पाप से युद्ध करने वाले योद्धा अपने सम्पूर्ण गृह तथा परिवार सहित समाप्त हो जायेंगे।”
मैं पाप का हृदय हूं। क्या तुम यह इच्छा कर सकोगे कि मेरे हृदय के स्पन्दन को थामकर तुम मनुष्य-मात्र की गति को रोक दो?
“क्या तुम मूल को नष्ट करके उसके परिणाम को स्वीकार कर पाओगे? मैं ही तो मूल हूं।”
“क्या तुम अब भी इस निर्जन वन में मुझे इसी प्रकार मर जाने दोगे? क्या तुम आज उसी बन्धन को तोड़ फेंकना चाहते हो, जो मेरे और तुम्हारे बीच दृढ़ है? जवाब दो, ऐ पुजारी!”
यह कहकर शैतान ने अपनी बाहें फैला दी और सिर झुका लिया। तब वह जोर-जोर से हांफने लगा। उसका चेहरा पीला पड़ गया और वह मिस्र की उन मूर्तियों जैसा दीखने लगा, जो नील नदी के किनारे समय द्वारा ठुकराई पड़ी हैं।
. तब उसने अपनी बुझती आंखों को पिता इस्मान के चेहरे पर गड़ा दिया और लड़खड़ाती आवाज में बोला, “मैं थक गया हूं और बहुत दुर्बल हो गया हूं। अपनी मिटती आवाज में वे ही बातें बताकर, जिन्हें तुम स्वयं जानते हो, मैंने गलती की है। अब जैसी तुम्हारी इच्छा हो, वैसा कर सकते हो। तुम मुझे अपने घर ले जाकर मेरे घावों की चिकित्सा कर सकते हो अथवा अपने हाल पर मुझे यहीं मरने को छोड़ सकते हो।”
पिता इस्मान व्याकुल हो उठे और कांपते हुए अपने हाथों को मलने लगे।
तब अपने स्वर में क्षमा-याचना भरकर वे बोले, “एक घण्टा पूर्व जो मैं नहीं जानता था, वह अब मुझे मालूम हुआ है। मेरी भूल को क्षमा करो। मैं अब जान गया हूं कि तुम्हारा अस्तित्व संसार में प्रलोभन का जन्मदाता है और प्रलोभन ही एक ऐसी वस्तु है, जिसके द्वारा ईश्वर मनुष्यता का मूल्य आंकता है। यह एक माप-दण्ड है, जिससे सर्वशक्तिमान ईश्वर आत्माओं को तोलता है।
“मुझे विश्वास हो गया है कि यदि तुम्हारी मृत्यु हो गई तो प्रलोभन का भी अन्त हो जायेगा और इसके अन्त से मृत्यु, उस आदर्श शक्ति को नष्ट कर देगी, जो मनुष्य को उन्नत एवं चौकस बनाती है!”
“तुम्हें जीवित रहना होगा। यदि तुम मर गये और यह बात लोगों को ज्ञात हो गयी तो नरक के लिए उनके भय का अन्त हो जायेगा और वे पूजा-अर्चना करना छोड़ देंगे, क्योंकि पाप का अस्तित्व ही तो न रहेगा!
“तुम्हें अवश्य जीवित रहना होगा, क्योंकि तुम्हारे जीवन के ही अपराध एवं पाप में मनुष्य की मुक्ति का द्वार है।”
“जहां तक मेरा सम्बन्ध है, मैं मनुष्यों के प्रति अपने प्रेम की स्मृति में, तुमसे जो घृणा करता हूं, उसका त्यागं करूंगा।”
इस पर शैतान ने एक विकट अट्टहास किया, जिसने पृथ्वी को हिला दिया और बोला, “तुम कितने बुद्धिमान व्यक्ति हो, पिता! अध्यात्म-विद्या का कितना आश्चर्यमय ज्ञान तुम्हारे पास संचित है। अपने ज्ञान के द्वारा तुमने मेरे अस्तित्व का कारण ढूंढ निकाला है, जिसे मैं स्वयं कभी न समझ पाया और अब हमें एक-दूसरे की आवश्यकता का ज्ञान हुआ।
“मेरे भाई! आओ, मेरे निकट आओ। पृथ्वी पर अन्धकार फैलता जा रहा है और मेरा आधा रक्त इस घाटी के उदर में समा चुका है, मानो मुझमें अब कुछ रहा ही नहीं है। एक टूटे हुए शरीर के टुकड़े-भर हैं, जिन्हें, यदि तुम्हारी सहायता प्राप्त न हुई तो मृत्यु शीघ्र ही अपनाकर ले जायेगी।”
पिता इस्मान ने अपने करते की आस्तीने ऊपर चढ़ा लीं और अपने घर की ओर चल पड़े।
उन घाटियों के बीच सन्नाटे में घिरे और अन्धकार के आवरण से सुशोभित, पिता इस्मान अपने गांव की ओर चले जा रहे थे।
उनकी कमर उनके ऊपर के बोझ से झुकी जा रही थी और उनकी काली पोशाक तथा लम्बी दाढ़ी पर से रक्त की धारा बह रही थी; किन्तु उनके कदम सतत आगे बढ़ते जा रहे थे और उनके होंठ मृतप्राय शैतान के जीवन के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे।