मैं जी उस इंसान की तबाही का अंदाजा करो जो किसी कुमारी के प्रेम में फंस जाए और उसे अपने जीवन की साथिन बना ले, अपने गाढ़े पसीने की कमाई और अपने कलेजे का खून उसके पांवों पर निछावर कर दे और अपनी मेहनत का नतीजा और अपनी कोशिशों का ईनाम अपने हाथ से निकल जाने दे। फिर उसे अचानक यह मालूम हो जाए कि उस औरत ने, जिसे उसने दिनों की मेहनत तथा रातों के जागरण से पाया था, अपना दिल किसी दूसरे आदमी को दे दिया है, ताकि वह उसके पैसे और जायदाद से फायदा उठाये और उसके प्रेम की दुनिया को आबाद करे।
फिर उस औरत की बर्बादी को भी देखो, जिसने जवानी के नशे से अचानक होश में आकर अपने आपको एक मर्द के हवाले कर दिया हो। उसके माल और दौलत से गुलछर्रे उड़ाये हों। उसकी मुहब्बत तथा खातिरदारी से फायदा उठाया हो, लेकिन उसके अपने दिल को मुहब्बत की चिंगारी ने छुआ तक न हो और वह अपनी आत्मा को उस रूहानी मदिरा से तृप्त न कर सकती हो, जो आदमी की आंखों से निकलकर औरत के दिल में टपकती है।
मैं रशीद बेग नामान को एक अर्से से जानता था। वह लेबनान का निवासी था और उसका जन्म बैरुत में हुआ था। वह एक बहुत पुराने अमीर घराने से संबंध रखता था, जिसमें रहन-सहन का पुराना तरीका अब तक मौजूद था। वह पुरखों की उन बातों को बयान करने में गर्व का अनुभव करता था, जिनसे खानदान की सज्जनता तथा गौरव दिखाई दे। वह रहने के ढंग और पुराने विश्वासों में अपने पुरखों के पीछे चला करता था। हां, आदतों और पोशाक में उसने तब्दीली की थी और वह पच्छिमी ढंग की पोशाक का शौकीन था। उसके खानदान की औरतें पच्छिमी पोशाक में ऐसी मालूम होती थीं; जैसे हवा में उड़ने वाले पंछियों के झुंड।
रशीद बेग बड़ा नेकदिल और सुशील आदमी था। ज्यादातर शामी लोग चीजों को सिर्फ ऊपरी निगाह से देखते हैं और उनके भीतरी तत्वों का विचार बिल्कुल नहीं करते। वे -गीत के तत्वों को पहचानने की कोशिश नहीं करते, बल्कि उन आवाजों से आनंद हासिल करके रह जाते हैं, जो गीत को घेरे रहती हैं। वह अपना ध्यान उन बाहरी बातों पर जमाया करते हैं, जो जीवन के भेदों से दिव्य चक्षुओं को भी अंधा कर देती हैं; और चीजों के गुप्त रहस्यों को जानने के बजाय अपने आपको अस्थायी सुखों के लिये निछावर कर देते हैं।
रशीद बेग उन आदमियों में से था, जो प्रेम को प्रकट करने या चीजों और इंसानों के संबंध में अंदाजा लगाने में जल्दबाजी कर बैठते हैं और उसके बाद अपनी जल्दबाजी पर शमति और पछताते हैं। लेकिन यह अनुभव उन्हें तब होता है जबकि समय हाथ से निकल जाता है और लज्जा एक वरदान के बजाय उपहास और तिरस्कार का कारण बन जाती है।
ये वे गुण और आदतें थीं, जिन्होंने रशीद बेग को गुलबदन के प्रेम में फंसा दिया। उसने गुलबदन से उस वक्त से पहले शादी कर ली, जबकि दोनों के दिल मिल जाते और उस वास्तविक प्रेम का प्रारंभ हो जाता, जो घर-गृहस्थी के जीवन को स्वर्ग बना देता है।
मैं कुछ साल बैरूत से बाहर रहा और जब वापस आया तो रशीद बेग से मिलने गया। मैंने देखा कि रशीद का शरीर दुबला हो गया है, रंग बदल गया है और उसके चेहरे -से दुःख और शोक के चिन्ह दिखाई देते हैं, उसकी चिंता से भरी आंखें और उदास निगाह उसके दिल की बर्बादी और हृदय के अंधेरे का हाल खामोश जबान से बयान कर रही है। चूंकि बाहर से मुझे उसकी तकलीफ के कोई कारण दिखाई न देते थे, इसलिए मैंने सवाल किया।
“ऐ भले आदमी, तुम्हें क्या तकलीफ है? और उस खुशी का क्या हुआ, जो तुम्हारे चेहरे से किरणों की तरह निकलती थी? और वह आनंद कहां गया, जो तुम्हारी जवानी के साथ जुड़ा हुआ था? क्या मौत ने तुम्हारे किसी प्यारे दोस्त के और तुम्हारे बीच फासला पैदा कर दिया है या अंधेरी रातों ने तुम्हारी संपत्ति छीन ली, जो तुमने खुशहाली के दिनों में जमा की थी? अपनी दोस्ती के खातिर बताओ तो सही कि कौन-सी मुसीबत तुम पर आ पड़ी है?”
रशीद ने दर्द-भरी निगाहों से मेरी तरफ देखा और वह उन शब्दों पर विचार करने लगा, जो मैंने उसके अच्छे दिनों के बारे में कहे थे। फिर उसने आंखें बंद कर ली और निराशा तथा क्लेश से भरी हुई आवाज में बोला “अगर तुम्हारा कोई मुरब्बी मर जाय और तुम अपने आसपास देखो कि कई दूसरे मौजूद हैं तो तुम सब्र करोगे और तुम्हारा माली नुकसान हो जाय और तुम ऐसा विचार करो कि जिस तरह यह दौलत आई थी, उसी तरह और भी आ जायेगी तो तुम उस अमीर के आनंद में नुकसान को भूल जाओगे। लेकिन अगर इंसान के दिल की शांति नष्ट हो जाय तो वह उसे कहां पा सकता है? और उसका बदला उसे कहां मिल सकता है?
मौत अपना हाथ बढ़ायेगी और तुम्हें अपने बेरहम पंजों से दबायेगी, लेकिन तुम मर नहीं सकोगे, यहां तक कि हँसती जिंदगी की अंगुलियां तुम्हें छूकर तुम्हारे चेहरे पर खुशी और मुस्कुराहट के चिन्ह पैदा कर देंगी। फिर बेसुधी के क्षणों में काल अपनी भयावनी आंखें तुम्हारी आंखों में डालकर तुम्हें गर्दन से पकड़ेगा और बड़ी बेरहमी से तुम्हें जमीन पर पछाड़कर अपने फौलादी पांवों से कुचल डालेगा और तुम पर हंसता हुआ चला जायेगा। कुछ अर्से के बाद वह शर्मिंदा होकर वापस आयेगा, अपने मुलायम हाथों से तुम्हें उठायेगा और आशा के गीत गाकर तुम्हें व्याकुल कर देगा। रात की कल्पनाओं के साथ अनगिनत विपदाएं और तकलीफें तुम्हारे सामने आवेंगी और सुबह होने तक तुम्हें उदास रखेंगी। तुम अपने विश्वास और दृढ़-निश्चय से परिचित हो और आशाओं में उलझे रहोगे।
“लेकिन अगर तुम्हारे नसीब में यह लिखा हो कि तुम्हारे अस्तित्व के कारण वह चीज उड़ जाय, जिसे तुम प्यार करते रहे हो और जिसे खाने के लिए अपने दिल का टुकड़ा और पीने के लिए आंखों का नूर देते रहे हो, जिसे तुमने अपने दिल में बिठा रखा हो और जिसकी खुराक तुम्हारा कलेजा हो तो तुम्हारा क्या हाल होगा? जब तुम यह देखो कि तुम्हारा चिड़िया तुम्हारे हाथ से निकलकर उड़ गई है और बादलों तक जा पहुंची है, फिर नीचे उतरी है, और किसी दूसरे पिंजड़े में जा ठहरी है और उसकी वापसी की कोई उम्मीद नहीं, तो फिर तुम क्या करोगे? भगवान के लिए बताओ कि फिर तुम क्या कर सकोगे?
तुम्हें धीरज और चैन कैसे मिलेगा? और तुम्हारी उम्मीदें कैसे जिंदा रह सकेंगी?”
रशीद बेग ने आखिरी वाक्य इस तरह कहा मानो उसका दम घुट रहा हो। वह अचानक अपने पैरों पर खड़ा हो गया और इस तरह कांपने लगा, जिस तरह हवा के झोंके से घास की सूखी पत्ती थरथराती है। उसने अपने हाथ सामने की ओर इस तरह फैलाये, मानो वह अपनी टेढ़ी उंगलियों से किसी चीज को पकड़कर उसे टुकड़े-टुकड़े कर देना चाहता हो। उसकी आंखों में खून उतर रहा था और उसके चेहरे का रंग गुस्से से लाल हो रहा था। उसकी आंखें बाहर निकली जा रही थीं और होंठ फड़क रहे थे। उसने एक चक्कर लगाया; जैसे वह अपने सामने एक अजगर को देख रहा हो, जो उसे निगल जाना चाहता हो। इसके बाद उसने मेरी तरफ देखा और उसके चेहरे का रंग पहले की तरह हो गया। उसका जोश और गुस्सा दर्द तथा दुःख में बदल गया और उसने रोते हुए कहा।
“वह औरत है! हां, वह औरत है, जिसे मैंने गरीबी और गुलामी के गड्ढे से निकालकर उसके सामने खजाने डाल दिये और उसे इस लायक बनाया कि उसके शानदार कपड़े, सुंदर रूप और नौकर-चाकर देखकर दूसरी औरतें उससे ईर्ष्या करें। वह औरत जिसे । मेरा दिल प्यार करता था और जिसके कदमों पर मैंने अपनी मुहब्बत और मेहरबानी । निछावर कर दी और जिसे अपनी उदारता और कृपा से मैंने ऊपर उठाया, वह औरत, जिसका मैं सच्चा साथी, सच्चा दोस्त और ईमानदार पति था, वह बेईमान और बदमाश साबित हुई।
अब वह गरीबी की बेइज्जत जिंदगी बसर करने के लिए एक दूसरे आदमी के । पास चली गई है। वह औरत, जिसका मैं आशिक था; खूबसूरत चिड़िया, जिसे मैंने अपने हृदय की धड़कनें दीं, आंखों की पुतलियों का तेज पिलाया, अपनी छाती को उसका पिंजड़ा बनाया और अपने जिगर का टुकडा खाने को दिया, वह चिडिया मेरे हाथों से निकल गई है। इतना ही नहीं, बल्कि वह मुड़कर एक ऐसे पिंजड़े में चली गई है, जो झड़बेरी की तीलियों का बना हुआ है, जिसमें खाने के लिए कांटे और कीड़े-मकोड़े तथा पीने के लिए जहर और कडुवा पानी है। उस पवित्र देवता ने, जिसने मेरे प्रेम का बागीचा आबाद किया था, भयंकर शैतान का रूप बनाया और अंधेरे में जा फंसा, ताकि उसके पाप और उसकी काली करतूतें मुझे क्लेश दें।”
मैं अपनी जगह से उठा। मेरी आंखें भरी हुई थी और हमदर्दी की भावना से मेरा हृदय भर गया था। फिर भी मैं चुपचाप इस तरह विदा हुआ मानो उसकी बातें बेसूद थीं। उसका घायल हृदय शोक में डूबा हुआ था और प्रकृति को मंजूर न था कि कोई चिंगारी उसके हृदय के अंधेरे को प्रकाशित करे।
कुछ दिनों बाद में एक छोटे-से मकान में गुलबदन से मिला, जो पेड़ों और फूलों से घिरा हुआ था। जब गुलबदन रशीद बेग नामन के घर थी तब उसने मेरा नाम सुन रखा था।
जब मैंने गुलबदन की सुंदर आंखें देखीं और उसकी मीठी आवाज का गीत सुना तो मैंने अपने दिल में कहा, “क्या ऐसा हो सकता है कि यह औरत बदमाश हो? और क्या यह मुमकिन है कि यह साफ-सुथरा चेहरा एक पापी दिल पर पर्दा डाल रहा हो?”
लेकिन मैंने इन विचारों को छोड़कर अपने हृदय से कहा, “जिस चीज ने उस बदनसीब आदमी को तबाह किया है, क्या वह यही खूबसूरत चेहरा नहीं हो सकता? और क्या हमने देखा-सुना नहीं कि बाहरी सुंदरता भीतरी विनाशों और गहरे दुःखों का कारण बन जाती है? क्या वही चांद जो कवियों की सूक्ष्म कल्पनाओं में प्रकट होता है, समुद्र में ज्वार-भाटा पैदा करके तूफान का कारण नहीं बन जाता?”.
हम दोनों बैठ गये और गुलबदन ने इस तरह कि मानो उसे मेरी चिंता का ज्ञान हो, यह नहीं चाहा कि मेरी हैरानियों और मेरी शंकाओं के बीच जो कशमकश जारी थी, वह ज्यादा देर तक चलती रहे। इसलिए उसने अपने सुंदर सिर को अपने गोरे हाथ से सहारा दे दिया और संगीत के-से मधुर स्वर में बोली “ऐ भले आदमी! मैं अब से पहले कभी तुमसे नहीं मिली हूं, लेकिन तुम्हारे विचार लोगों के मुंह से सुन चुकी हूं। मैं जानती हूं कि तुम मुसीबतजदा जमात की औरतों पर कृपा की निगाह रखते हो, उनकी कमजोरियों से तुम्हारी हमदर्दी है और उनके दुःख का तुम्हें ठीक-ठाक ज्ञान है। इसलिए मैं चाहती हूं कि अपने दिल का हाल तुम्हें सुनाऊं और अपना दिल खोलकर तुम्हारे सामने रख दूं ताकि तुम मेरी मुसीबतों को देख सको और लोगों को बता सको कि गुलबदन बेइमान और बदमाश औरत नहीं है।
“मेरी उम्र अठारह साल की थी कि वक्त और कुदरत ने मेरी किस्मत को रशीद बेग नामान से बांध दिया। उसकी उम्र उस समय कोई चालीस साल की थी। उसने मोहब्बत की पैगें बढ़ायीं और आखिरी में मुझे अपनी बीवी और अपने शानदार घर की मालकिन बनाया। मेरे आसपास नौकरों-चाकरों की बहुत बड़ी तादाद थी। रशीद बेग ने मुझे कीमती रेशमी कपड़े पहनाये। मेरे सिर, बांहों और गर्दन को जवाहरात से सजाया और मुझे एक तोहफे के तौर पर अपने यार-दोस्तों के मकानों पर लिये फिरा। उसके होंठों पर बहादुरी तथा जीत की मुस्कराहट नाच रही थी। वह कुतूहल और ललचाई निगाह से मेरी तरफ देखता था और जब औरतें मेरी खूबसूरती और फैशन की तारीफ करतीं तो उसका सिर गर्व से ऊंचा हो जाता। लेकिन शायद वह औरतों की उन कानाफूसियों को नहीं सुनता था, जो वे अक्सर करती थीं। एक कहती कि यह रशीद बेग की औरत है या बेटी? दूसरी कहती, अगर रशीद बेग अपनी जवानी के दिनों में शादी करता तो उसकी बेटी की उम्र गुलबदन से ज्यादा होती।
“यह सब कुछ उस वक्त हुआ जबकि मैं जिंदगी के रहस्य से परिचित नहीं हुई थी।
मेरे हृदय में मुहब्बत की पवित्र चिंगारी नहीं चमकी थी और मेरे भीतर सुख-दुःख का बीज नहीं बोया गया था। हां, यह सब कुछ उस वक्त हुआ जबकि मैं सुंदर कपड़ों और कीमती गहनों को ही, जिन्हें मैं पहने रहती थी, सच्चा शील समझती थी और जबकि मैं नींद से नहीं जागी थी। लेकिन जब मैं जाग गई और रोशनी ने मेरे दिल के सुनेपन को भर दिया और पाक आग ने मेरे दिल में एक जलन-सी पैदा कर दी तो मेरी आत्मा तकलीफों को महसूस करने लगी। जब मैं जागी तो मैंने देखा कि मेरे पर दाएं-बाएं हिल रहे हैं और मुझे उड़ाकर मुहब्बत के आकाश की ओर ले जाना चाहते हैं। लेकिन जब मैंने अपने आपको धर्म-शास्त्र की उन कड़ियों में जकड़ा पाया, जिन्होंने मेरे जिस्म को उन बंधनों तथा उस धर्मशास्त्र को समझने से पहले ही जकड़ दिया था तो मैं कांप उठी।
जब मैं जागी और इन बातों से परिचित हुई तो मुझे मालूम हुआ कि स्त्री का शील आदमी की कुलीनता, श्रेष्ठता, सहनशीलता और कृपा पर आधार नहीं रखता, बल्कि वह उस प्रेम में है, जो उसकी आत्मा को पुरुष की आत्मा में मिला देता है और उसकी प्रीति को पुरुष के हृदय से बांधकर दोनों को दो शरीर और एक प्राण कर देता है। जब यह दुःखदाई चीज मेरे सामने उजागर हुई तो मैंने देखा कि मैं रशीद नामान के घर में एक चोर की तरह हूं। मैं उसकी रोटी खाती हूं और रात के अंधेरे में छिप जाती हूं। मैंने समझ लिया कि मैं जो हर दिन उसके सहवास में बिताती हूं वह ऐसा झूठ है, जो मेरे माथे पर धोखेबाजी के जलते हुए अक्षरों में लिखा जा रहा है और आकाश और धरती उसे देख रहे हैं और यह कि मैं उसकी नेकी और कृपा के बदले में उससे दिली-मुहब्बत नहीं कर सकती और न उसकी भलाई तथा प्रेम के बदले में अपना प्रेम दे सकती हूं।
मेरे मन में विचार आया और वह था कि मैं उससे प्रेम करना सीखू। लेकिन मैं उससे प्रेम करना न सीख सकी, क्योंकि प्रेम एक ताकत है, जिसे हृदय पा नहीं सकते, बल्कि जो हृदयों को जीत लेती है। मैंने भगवान से प्रार्थना की और उसके सामने मैं बहुत रोई-धोई और रात की खामोशी में आसमान के आगे बेकार गिड़गिड़ाई कि-“हे आसमान, मेरी आत्मा को उस पुरुष की आत्मा से मिला दे, जिसे मैंने अपनी जिंदगी का साथी बनाया है।” लेकिन आसमान ने ऐसा न किया, क्योंकि प्रेम हमारी आत्माओं में भगवान की ओर से जन्म लेता है, मांगने से नहीं मिलता।
“इस तरह मैं उस आदमी के घर पूरे दो साल तक रोती-बिलखती रही। मैं परिंदों की आजादी से ईर्ष्या करती थी। और मुझे देखने वाली औरतें मेरे कैदखाने पर ईर्ष्या करती थीं। मैं रात-दिन विलाप करती रहती थी और हर रोज की भूख और प्यास से मरी जाती थी। आखिर उन अंधेरे दिनों में एक रोज मझे अंधेरे के पीछे रोशनी की मनोहर किरण -दिखाई दी, जो मेरी आंख से निकल रही थी। मैंने देखा कि एक नौजवान जिंदगी के बहाव में अकेला बहा जा रहा है और उस मकान में किताबों और कागजों के ढेर में तनहा जिंदगी बिता रहा है। मैंने अपनी आंखें बंद कर लीं ताकि मैं उस किरण को न देख सकू। मैंने अपने आपसे कहा, तुम्हारी किस्मत में कब्र का अंधेरा लिखा है, तो तुम रोशनी का लालच किसलिये करती हो? उसके बाद मैंने स्वर्ग के देवदूतों का एक गीत सुना, जिसकी लय ने
मुझे तड़पा दिया। मैंने अपने कान बंद कर लिये और अपने आपसे कहा, तुम्हारे नसीब में रोना-पीटना ही लिखा हुआ है तो तुम गीत की उम्मीद किसलिए करती हो? मैंने अपने कानों को बंद कर लिया ताकि मैं उस गीत को न सुन सकू। लेकिन मेरी आंखें उस किरण को देखती रहीं, हालांकि वे बंद थीं। मैं डर से घबड़ा उठी। एक फकीर एक अमीर के महल के पास एक हीरे की तरह पड़ा था, लेकिन मुझमें न यह हिम्मत थी कि उसे उठा लूं और न उसे छोड़ ही सकती थी। मैंने रोना शुरू किया। मैं मुसीबतों से घिरी हुई थी। आखिर मैं इंतजार और बेचैनी की चोट से जमीन पर गिर पड़ी।”
यहां गुलबदन एक क्षण के लिए रुक गई और उसने अपनी बड़ी-बड़ी आंखें बंद कर ली, मानो भूतकाल का वह नजारा उसकी आंखों के सामने फिर रहा था। वह मेरी आंखों से आंखें मिलाने की हिम्मत नहीं कर सकती थी। उसके बाद उसने आंखें खोली और कहा
“वह इंसान जो कभी न मिटने वाले जगत से आते हैं और असली जीवन से परिचित होने के पहले ही वापस चले जाते हैं, वे उस औरत के दुःख से परिचित नहीं हो सकती, जिसके एक तरफ वह आदमी हो, जिसका प्रेम उसे भगवान की ओर से दिया गया हो और दूसरी तरफ वह आदमी हो, जिसके साथ वह दुनिया के धर्म-बंधनों से बंधी हुई है। यह एक दुःख-भरी कहानी है, जो औरत, खून और आंसुओं से लिखी जाती है और जिसे पढ़कर आदमी हंसते हैं, क्योंकि वे उसे समझ नहीं सकते और अगर समझ भी जाते हैं तो उनकी हंसी, निर्दयता और व्यभिचार में बदल जाती है और वह क्रोध की आग के जोश में औरत के सिर पर बरस पड़ते हैं और उसके कानों को धिक्कार और भर्त्सना से भर देते हैं।
“यह एक दर्दनाक दास्तान है, जिसका नाटक रात के अंधेरे में उस हर औरत के दिल में चलता है, जिसका शरीर इससे पहले कि वह विवाह की असलियत को समझकर किसी आदमी की गृहस्थी के अहाते में बंद हो जाय, वह अपनी आत्मा को किसी दूसरे आदमी के लिए तड़पती हुई पाती है, जिससे वह सच्चे अर्थों में प्रेम करती है। यह एक भयंकर लड़ाई है, जिसकी शुरूआत औरत की कमजोरी जाहिर होने से होती है और आखीर उस समय तक नहीं होता जब तक कि कमजोरी को मजबूती की गुलामी से छुटकारा न मिल जाय । मनुष्यों के सड़ियल धर्मशास्त्र और हृदय की पवित्र भावनाओं के बीच यह एक प्राणघातक युद्ध है-हां, उन्हीं पवित्र भावनाओं के बीच, जिनके कारण मैं कल तक जमीन पर पड़ी मौत की इच्छा कर रही थी और खून के आंसू रो रही थी।
“लेकिन मैं उठी और मैंने अपने आपको दूसरी औरतों की मूर्खता से छुड़ा लिया, अपने पैरों को कमजोरी और गुलामी के फंदों से अलग कर लिया और प्रेम और स्वतंत्रता के वायुमंडल में उड़ने लगी। अब मैं भाग्यवान हूं, क्योंकि मुझे उस पुरुष का सहवास हासिल है, जिसके हृदय से प्रेम की लपट मेरी तरफ लपकी। अब इस दुनिया में कोई शक्ति इतनी प्रबल नहीं है, जो मेरे इस सौभाग्य को मुझसे छीन सके, क्योंकि हमारी आत्माएं समझदारी और प्रीति के धागे में गुंथ चुकी हैं।”
गुलबदन ने मेरी ओर अर्थपूर्ण दृष्टि से देखा, मानो वह यह चाहती थी कि अपनी आंखों से मेरे हृदय के अंदर की स्थिति को देखकर यह मालूम कर ले कि मेरे मन पर उसकी बातों का क्या असर हुआ है। फिर वह मेरे भीतर से कोई आवाज सुनना चाहती थी। लेकिन मैं चुप रहा। इसलिए कि शायद मेरे बोलने से उसकी बातों के सिलसिले में कहीं रुकावट न पैदा हो जाय। गुलबदन ने अपनी बातों को जारी रखा।
उसका स्वर बड़ा लुभावना था और उसमें पवित्रता और स्वतंत्रता की मिठास थी। उसने कहा “लोग आपसे कहेंगे कि गुलबदन बेईमान और बेवफा औरत है, जिसने अपने मन की काम-वासना की गुलामी स्वीकार की और जो उस आदमी को छोड़कर चली गई, जिसने उसकी इज्जत को बढ़ाकर उसे अपने घर की स्वामिनी बनाया। लोग आपसे कहेंगे कि गुलबदन बदचलन है, जो विवाह के पवित्र और धार्मिक विधान को तोड़कर एक ऐसे पिंजरे में चली गई, जो नरक के कांटों से बना हुआ है।
उसने अपने शरीर की पोशाक उतार फेंकी है और पाप और बेहयाई के कपड़े पहनकर वह धर्महीन बन गई है। वे आपसे कहेंगे कि गुलबदन ने लज्जा का बुरका तार-तार कर दिया है। लेकिन ये लोग उन खाली गुफाओं की | तरह हैं, जो आवाजों को लौटा तो देते हैं, मगर उनके मानी नहीं समझते। वे न तो दुनिया के जीवों के ईश्वरी धर्मशास्त्र से परिचित हैं और न धर्म के वास्तविक लाभ को ही समझते हैं।
वे नहीं जानते कि अपराधी कौन है और निरपराध कौन है। वे अपनी अदूरदर्शिता से सिर्फ बाहरी आचरणों को देखते हैं और उनके भीतरी भेदों पर निगाह नहीं डालते। वे मूर्खता के साथ फैसले करते हैं और सबके लिए एक-सा ही फतवा देते हैं। उनके सामने अपराधी, सदाचारी और बदमाश सब बराबर हैं।
“मैं अगर बदचलन और बेईमान थी तो रशीद नामान के घर में थी जिसने इससे पहले कि कुदरत मुझे आत्मा तथा प्रेम के संबंध में कोई ढंग सिखाती, रीति-रिवाजों तथा अंधानुकरणों के दबाव से मुझे अपनी स्त्री बनाया। वहां मैं अपनी और भगवान की भी निगाह से नीच और पापिन थी, क्योंकि मैं भीख का टुकड़ा खाती थी और अपने शरीर से उसकी काम-वासना को पूरा करती थी। लेकिन अब मैं पवित्र हूं, क्योंकि प्रीति के शील ने मुझे स्वतंत्र कर दिया है।
अब मैं पवित्र और ईमानदार हूं क्योंकि अपने शरीर को रोटी के बदले और जीवन को कपड़ों के बदले बेच डालना मैंने छोड़ दिया है। लेकिन मैं उस वक्त बदचलन और पापी थी, किंतु लोग मुझे इज्जतदार औरत समझते थे। और आज मैं शीलवती और पवित्र हूं, लेकिन लोग मुझे तुच्छ और नीच समझते हैं, क्योंकि वे लोगों के – व्यक्तित्व के विषय में उनके शरीरों पर से मत बनाते हैं और आत्मा का अनुमान जड़ वस्तुओं के पैमाने से करते हैं।”
गुलबदन खिड़की के करीब हो गई और उसने अपनी दाईं ओर शहर की तरफ इशारा किया। उसकी आवाज पहले से ज्यादा ऊंची हो गई और उसने ऐसी नफरत और हिकारत की आवाज से बोलना शुरू किया मानो उसे रास्तों में, छतों पर और खिड़कियों में पतन और विकृति के निशान दिखाई दे रहे थे। उसने कहा हैं।
“देखो! उस शानदार और बड़े महल की दीवारों पर के कसीदाकारी के रेशमी पर्दे बेईमानी तथा झूठ का सबूत दे रहे हैं। उनकी छतें सुनहले बेलबूटों से सजी हुई हैं, लेकिन उनके नीचे बनावटीपन के पहलू में झूठ भरा हुआ है। उन लड़कियों को देखो, जिनसे ऊपरी तौर पर सज्जनता और सुशीलता टपकती है, लेकिन दरअसल उनके अंदर पाप, बदमाशी, और विनाश छिपा हुआ है। ये कलसदार कबें हैं, जिनमें आंखों के सुरमे और होंठों की लाली की तह में औरतों का कपट और फरेब छिपा हुआ है, और उनके कानों में आदमियों का गरूर और पशुता, सोने और चांदी की चमक-दमक बनकर जगमगाती है।
उस आलीशान महल की दीवारें गर्व तथा बढ़प्पन से आकाश तक पहुंच रही हैं, लेकिन अगर उन्हें उस धोखेबाजी और झूठ का पता चला जाय, जो उन पर छाये हुए हैं, तो वे फट जायं और टुकड़े-टुकड़े होकर जमीन पर ढह पड़ें। ये वे मकान हैं, जिनकी ओर एक देहाती ललचाई आंखों से देखता है, लेकिन अगर उसे मालूम हो जाय कि इन मकानों में रहने वालों में उस असली मुहब्बत का एक कतरा भी मौजूद नहीं जिससे उसकी घरवाली का दिल भरा हुआ है तो उसे उनकी हालत पर तरस आ जाय।”
गुलबदन मेरा हाथ पकड़कर मुझे खिड़की के पास ले गई, जहां से महल नजर आ रहे थे और बोली, “आओ, मैं तुम्हें उन लोगों के राज बताऊं, जिनका नमूना बनना तुम हरगिज पसंद न करोगे। उस महल की तरफ देखो, जिसके खंभे संगमरमर के बने हुए हैं, जिसके छज्जे पीतल के हैं और जिसकी खिड़कियां बिल्लौरी हैं। उस महल में एक अमीर आदमी रहता है, जिसने धन-दौलत को अपने कंजूस बाप से विरासत में पाया है।
दो साल हुए, उसने एक ऐसी औरत से शादी की थी, जिसके बारे में इससे ज्यादा कुछ मालूम न था कि उसका बाप ऊंचे खानदान का था और उसका रुतबा शहर के नामी-गिरामी लोगों में बहुत ऊंचा था। शादी के बाद अभी एक महीना भी पूरा न हुआ था कि उसने अपनी औरत को तड़पने के लिए छोड़ दिया और खुद वासनाओं से भरी लड़कियों के साथ मौज -उड़ाने लगा। उसने उस बेचारी को इस महल में इस तरह छोड़ दिया जैसे कोई शराबी शराब की खाली सुराही को छोड़कर चला जाता है। औरत रोती-पीटती रही और गम और गुस्से के दम घोंटने वाले दुःख में फंसी रही। लेकिन जब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ तो उसने सब्र किया। वह जान गई कि उसके आंसू उन आंसुओं से ज्यादा कीमती हैं, जो उसके शौहर जैसे आदमी के लिए बहाये जायं। अब वह औरत एक सुंदर नवयुवक के प्रेम में पड़ी है। उसकी प्रीति से उसका हृदय सुखी है और वह अपने पति की जायदाद से, जो उसके चारों तरफ बिखरी पड़ी हैं, अपने प्रेमी की जेबें भरती रहती है।
“अब उस मकान की तरफ देखो, जिसके आसपास बगीचा है। उसमें एक ऐसा आदमी रहता है, जिसका खानदान पुराने जमाने में राज करता था, लेकिन आजकल पैसे और दौलत की कमी और घराने के लोगों की मूर्खता के कारण यह घराना अपनी ऊंची जगह से गिर गया है। कुछ साल हुए, इस आदमी ने एक बदसूरत, लेकिन अमीर औरत से शादी की और उसकी संपत्ति खींच लेने के बाद उसे भुला दिया और एक सुंदरी के साथ संबंध स्थापित करके अपनी औरत को शर्म से अपनी उंगलियां काटने के लिए छोड़ दिया। अब वह अपने बालों को संवारने, आंखों में सुरमा लगाने, होंठों और गालों पर लाली और पाउडर लगाने और अपने शरीर को रेशमी कपड़ों से सजाने पर घंटों खर्च कर देती है, ताकि कोई आदमी उस पर मोहित हो जाय, लेकिन बेचारी को उसमें कामयाबी नहीं मिलती।
“अब उस बड़े मकान की तरफ देखो, जो बलबूटा और तस्वीरों से सजा हुआ है। यह एक सुंदर लेकिन बदचलन औरत का घर है। उसका पहला खाविंद मर चुका है, जो बेहिसाब दौलत छोड़ गया है। इस औरत ने लोगों के उंगली उठाने से बचने के लिए एक मरियल जिस्म और कमजोर दिमाग वाले आदमी से शादी कर ली और अब वह शहद की मक्खी की तरह रहती है, जो फूलों का रस खींचती फिरती है।
“और उस मकान की तरफ देखो, जिसके कमरे बड़े-बड़े और मेहराबें सुंदर हैं। यह एक ऐसे आदमी का घर है, जो बड़ा लंपट और लालची है। उसकी औरत के शरीर की – सुंदरता के सारे गुण और दिल में मिठास का हर पहलू मौजूद है। उसके व्यक्तित्व में शारीरिक और आत्मिक गुणों का संयोग इस तरह है, जैसे अच्छी कविता में छंद के संगीत और अर्थ की विशेषता का संयोग होता है। वह ऐसी स्त्री थी, जो प्रेम में ही जीवन बिताती थी और प्रेम में ही मरती थी, लेकिन ज्यादातर लोगों की तरह उसके पिता ने भी उसके सयाने होने से पहले ही उसकी गर्दन में अनुचित और भद्दे ब्याह का फंदा डाल दिया। अब उसका शरीर दुबला-पतला है और कैद की गर्मी से वह मोमबत्ती की तरह पिघल रही है।
वह धीरे-धीरे इस तरह उदास हो रही है जैसे तूफान के सामने भीनी खुशबू । वह किसी ऐसी चीज से प्रेम करने की इच्छा रखती है, जिसे वह अच्छी तरह जानती हो, लेकिन उसे कोई नजर नहीं आता। अपने इस रूखे जीवन से वह छुटकारा पाने और ऐसे आदमी की गुलामी से आजाद होने के लिए, जिसके दिन और रातें रुपया जमा करने में खर्च होती हैं, मौत को गले लगाने की इच्छा रखती है, और उसका पति उस घड़ी पर दांत पीसता है जबकि उसने एक ऐसी औरत से ब्याह किया, जिससे कोई लड़का नहीं होता जो उसके पैसों और जायदाद का वारिस बने।
“अब उस अकेले मकान की ओर देखो, जो बागों के अंदर बसा हुआ है। यह मकान । एक प्रतिभावना कवि का है, जिसका धर्म आध्यात्मिकता है। उसकी पत्नी मूर्ख एवं कठोर है। वह उसकी कविताओं पर हंसती है, क्योंकि वह उन्हें नहीं समझ सकती। वह उसकी रचनाओं की खिल्ली उड़ाती है और कहती है कि ये बड़ी अजीब हैं। इसलिए वह कवि अब एक विवाहिता औरत के प्रेम में फंसा है। उसको कवि का बहुत ध्यान रहता है और वह अपनी मुस्कुराहट और नजर से अपने विचारों को कवि के हृदय तक पहुंचाती है।”
गुलबदन कुछ देर तक चुप रही और खिड़की के पास खड़ी हई कुर्सी पर बैठ गई, मानो वह उन राज भरे घरों के झूठ और कपट को देख-देखकर थक गई थी। इसके बाद वह फिर बोली “यही वे महल हैं, जिनमें रहने पर मैं कभी राजी नहीं हो सकती। यही वे कब्र है, जिनमें मैं अपनी जिंदगी को दफनाना नहीं चाहती। यही वे लोग हैं, जिनके पंजे से मैंने छुटकारा पाया है और उनके समाज से निजात हासिल कर ली है। यही वे लोग हैं, जो औरतों के शरीर से विवाह करते हैं, लेकिन उनकी आत्माओं से नफरत करते रहते हैं।
मैं उन पर कोई दोष नहीं लगाती, बल्कि उनसे माफी मांगती हई उनकी इस बात से घणा करती हूं कि वे झूठ, धोखेबाजी और गंदगी के गुलाम बन जाते हैं। मैं तुम्हारे सामने उनके दिलों के भेद और उनकी समाज की व्यवस्था के भेद इसलिए नहीं खोल रही हूं कि छिपाव और लुका-छिपी पसंद नहीं करती हूं, बल्कि मैंने यह सब इसलिए कहा है कि मैं तुम्हें उस जाति की असली हालत बताऊं, जिसकी तरह कल तक मैं स्वयं थी और तुम पर उन लोगों की स्थिति को प्रकट करूं, जो मेरे संबंध में हर किस्म की बुरी बातें किया करते हैं और कहते हैं कि मैंने अपने जिस्म की प्यास बुझाने के लिए उनका साथ छोड़ दिया। मैं उनके कपटजाल से निकल गई और मेरी आंखें इन्साफ, सचाई और शील की रोशनी देखने लगीं।
उन्होंने अब मुझे अपनी बिरादरी से निकाल बाहर कर दिया और मैं खुश हूं क्योंकि घृणा उसी से की जाती है, जिसकी आत्मा जुल्म और अत्याचार के खिलाफ विद्रोह करती है। मैं कल तक एक शिष्टाचार युक्त दस्तरख्वान की तरह थी और रशीद बेग उसी वक्त मेरे पास आता था जब उसको भूख लगती थी। लेकिन हम दोनों की आत्माएं तुच्छ नौकरों की तरह एक-दूसरे से दूर थीं। जब मुझ पर सचाई उजागर हुई तो मैंने गुलामी से इंकार कर दिया। मैंने अनुभव किया कि मैं अपनी सारी उम्र एक भयानक मूर्ति के सामने सिर झुकाकर नहीं बिता सकती। इसलिए मैंने धर्मशास्त्र को छोड़ दिया और अपने बंधन तोड़ डाले। लेकिन मैंने यह उस समय तक नहीं किया जब तक कि प्रीति की पुकार मेरे कानों में न पहुंची।
मैं रशीद बेग के मकान से इस तरह निकली, जिस तरह एक कैदी कैदखाने से भाग निकलता है। मैंने शान-शौकत, नौकर-चाकर, दौलत और इज्जत को छोड़ दिया और अपने प्रीतम के उस घर आ गई, जिसमें कोई दिखावटी शिष्टाचार नहीं है। मैं जानती थी कि मैं जो कुछ कर रही हूं वह सच और मुनासिब है, क्योंकि भगवान की इच्छा यह नहीं हो सकती कि मैं अपने हाथों से अपने पंख काट दूं और घुटनों पर सिर रखकर धूल में तड़पती रहूं, और यह कहती रहूं कि मेरा नसीब ऐसा ही था।
भगवान की यह इच्छा नहीं हो सकती कि मैं रोने-धोने में सारी उम्र गुजारूं और रात भर दुःख से छटपटाकर यह कहती रहूं कि सुबह कब होगी और जब सुबह हो जाय तो यह कहं कि दिन कब बीतेगा? कदरत की यह इच्छा कभी नहीं हो सकती कि इंसान की बदबादी हो जाय, क्योंकि कुदरत ने इंसान के दिल की गहराइयों में नेकी की इच्छा छिपाकर रखी है और इंसान की भलाई में भगवान की रोशनी छिपी हुई है।
“यही है मेरी कहानी, ओ भले आदमी! और आसमान तथा जमीन के सामने मेरी यही फरियाद है। मैं पुकार-पुकार कर कहती हूं, लेकिन लोग अपने कान बंद कर लेते हैं और मेरी बात नहीं सुनते। वे अपनी आत्मा की पुकार की भी परवा नहीं करते, क्योंकि वे इस बात से डरते हैं कि कहीं समाज की बुनियादें न हिल जायं। मैं इन्हीं मुसीबतों में फंसी रही।
आखिरकार मुझे नेकी की झलक नजर आई। अब अगर मुझे इसी वक्त मौत आ जाय तो मेरी आत्मा आकाश के सामने बिना किसी डर और आशंका के जा खड़ी होगी और वह खुशी और उम्मीद से भरी हुई होगी। मैंने अपने विवेक के परदों को बड़े-बड़े धर्मज्ञों के सामने खोलकर रखा है और कठोरता से यह कह दिया है कि मैं कोई काम ऐसा नहीं करूंगी, जिसे मेरा दिल न चाहे, इंसान का मन भगवान के व्यक्तित्व का एक जादू है। मैं अपने दिल की आवाज और देवदूतों की पुकार के सिवाय किसी दूसरी आवाज की ताबेदारी नहीं करूंगी।
“यह है मेरी कहानी, जिसे बेरुत के लोग जीवन के लिए एक अभिशाप और समाजरूपी शरीर के लिए एक गंदा फोड़ा समझते हैं। लेकिन वे उस समय लज्जित होंगे, जबकि वे मुहब्बत की असलियत को जानेंगे-उस प्रेम की जो उनकी अंधेरी रूह में मौजूद है। उनके दिलों में यह सचाई उसी तरह उगेगी. जिस तरह मरे हए इंसानों से भरी हुई जमीन से सरज फलों को पैदा करता है। उस समय वे मेरी कब्र के पास से गजरेंगे तो वहां | ठहर जायेंगे और कहेंगे कि यहीं वह गुलबदन सोती है, जिसने इंसानी जरूरत के सड़े-गले बंधनों से अपने आपको आजाद किया और यह इसलिए किया कि वह असली मुहब्बत की इज्जत को बनाये रखे।”
गुलबदन की बातें अभी खत्म नहीं हुई थीं कि इतने में दरवाजा खुला और एक सुंदर और सुडौल शरीर का नौजवान अंदर आया। उसकी आंखों से जादू की किरणें निकल रही थीं और उसके होंठों पर मुस्कराहट थी। गुलबदन खड़ी हो गई और बड़े प्रेम से उसका हाथ पकड़कर उसे मेरे पास ले आई। उसने उस नौजवान को मेरा नाम बड़े आदर से और उसका नाम मुझे बड़ी सादगी से बताया। मैं तुरंत समझ गया कि यह वही नौजवान है, जिसके लिए गुलबदन ने दुनिया को झुठलाया और उसके विधानों तथा रूढ़ियों का विरोध किया।
हम तीनों बैठ गये। वहां इतनी खामोशी छा गई कि ऐसा मालूम होता था, मानो हमारी आत्माएं देवदूतों की ओर उड़ी जा रही हैं। मैंने उन पर निगाह डाली। वे दोनों एक-दूसरे के पहलू में बैठे थे और ऐसा मालूम होता था, जैसे दोनों के बीच में कोई फासला नहीं है। मैं गुलबदन की कहानी का मतलब फौरन समझ गया और जान गया कि उस समाज के खिलाफ, जो विद्रोही आत्माओं से नफरत करता है-उसकी शिकायत का क्या मतलब है।
मैंने देखा कि मेरे सामने दो शरीर हैं, लेकिन उनमें एक ही स्वर्गीय आत्मा बस रही है। दोनों यौवन और एकता की मूर्तियां हैं। उनके हृदयों में सच्चा प्रेम निवास करता है और वे लोगों के भले-बुरे कहने की परवा नहीं करते। दोनों में दिली एकता मौजूद है और दोनों के साफ और पाक चेहरों में भलमनसाहत और पवित्रता की झलक दिखाई देती है। मैंने अपने जीवन में पहली बार यह दृश्य देखा कि ऐसे स्त्री-पुरुषों के चारों ओर नेकी चक्कर लगाती है, जिन्हें धर्म ने नीच ठहराया है और जिन्हें समाज ने अपने में से निकाल बाहर कर दिया है।
थोड़ी देर तक मैं बैठा रहा, लेकिन इसके बाद किसी तरह की बातचीत किये बिना वहां से विदा हुआ और उस छोटे से मकान से, जो प्रेम और नीति का मंदिर था, बाहर – निकला। मैं उन गलियों और महलों के बीच से गया. जिनके रहस्य गलबदन ने मझे बताये थे। मैं उसकी बातों और उनके आरंभ और अंत पर विचार करता जा रहा था, लेकिन अभी मैं उस बस्ती से निकला न था कि मुझे रशीद बेग नामान की याद आई।
मैंने अपने मन में कहा, “वह मुसीबतजदा आदमी बरबाद हो गया है लेकिन क्या आसमान उसकी बात को सुनेगा, जबकि उसके सामने गुलबदनं भी अपने ऊपर किये गये अत्याचारों की शिकायत पेश करेगी? क्या वह स्त्री अपराधी है, जिसने उसे छोड़ दिया और अपनी स्वतंत्र इच्छा का हुक्म माना या वह आदमी दोषी है, जिसने उसके साथ उस समय गृहस्थी का संबंध जोड़ा जबकि उसकी आत्मा मुहब्बत को चीन्हती न थी? दोनों में अत्याचारी कौन है और अत्याचार-पीड़ित कौन है? दोनों में अपराधी कौन है और निपराध कौन है?”
इसके बाद मैं अपने में सोचने लगा कि, ‘दुनिया में ऐसी स्त्रियां बहुत हैं, जो अपने निर्धन पतियों को छोड़कर धनवान लोगों से संबंध कायमी कर लेती हैं, क्योंकि उनकी अंदरूनी इच्छा यह होती है कि हम कीमती कपड़े पहनें और भोग-विलास की जिंदगी बितायें।’ यह इच्छा उन्हें अंधा कर देती है और वे अपमानित तथा लांछित जीवन बिताने को तैयार हो जाती हैं। लेकिन क्या गुलबदन को भी यही लालसा थी, जो एक धनी आदमी के शानदार महल से निकलकर एक गरीब आदमी की झोंपड़ी में चली गई है, और ऐसी झोपड़ी में पहुंच गई है, जहां पुरानी किताबों के ढेर के सिवाय और कुछ नहीं? बहुत-सी – स्त्रियां ऐसी हैं, जो नारी के स्वाभाविक शील तथा लज्जा को मार देती हैं और कामवासना को जीवित रखती हैं। वे अपने पतियों को अपनी शारीरिक वासनाओं की तृप्ति के लिए रोते-चिल्लाते छोड़ देती हैं और दूसरे लोगों के पास चली जाती हैं।
गुलबदन ने भी अपनी वासनाओं की तृप्ति के लिए ही ऐसा किया है और अपने आपको अपने दिलपसंद नौजवान के हवाले कर दिया है? और क्या वह ऐसा नहीं कर सकती थी कि अपनी कामवासनाओं को अपने पति के घर पर रहकर ही पूरा कर लेती और उन लोगों से छिपे तौर संबंध रखती, जो उसकी सुंदरता के उपासक और उसकी प्रीति पर मर मिटने वाले थे? गुलबदन एक पामाल औरत थी। वह नेकी की इच्छुक थी और नेकी उसे मिल गई। यही वह सच्चाई है, जिसके कारण समाज उसे हिकारत की निगाह से देखता है और धर्मशास्त्र कहता है कि उसकी गर्दन उड़ा देनी चाहिए।
इसके बाद मुझे विचार आया कि क्या स्त्री के लिए यह मुनासिब है कि वह अपनी नेकी को अपने पति के विनाश की कीमत देकर खरीदे? इसका उत्तर मेरे विवेक ने यह दिया कि क्या पुरुष के लिए यह उचित है कि वह अपनी नेकी के लिए अपनी औरत की इच्छाओं का गुलाम बना ले?
मैं चलता जा रहा था और गुलबदन की आवाज मेरे कानों में गूंज रही थी। अंत में मैं शहर के पास पहुंच गया। सूरज डूब रहा था। बाग-बगीचे शांति तथा तनहाई की चादर में छिप जाना चाहते थे और पक्षी शाम के गीत गा रहे थे। मैं ठहर गया। मैंने अपने आपसे कहा, “आजादी के स्वर्ग के सामने ये पेड़ सुगंधित हवा के झोंकों का आनंद ले रहे हैं और सरज और चांद की किरणों से आनंदित हो रहे हैं। ये पक्षी आजादी की हवा में विहार कर रहे हैं। ये फूल आजादी के वातावरण में महक फैला रहे हैं।
उसकी आंखों के सामने आने वाले प्रभात का सौंदर्य प्रकाश फैलाता है। इस धरती पर जो भी चीज है, वह फख करती है। लेकिन इंसान इस वैभव से वंचित है, क्योंकि उनकी पाक रूहें दुनिया के तंग विधानों. की गुलाम हैं। उनकी रूहों और जिस्मों के लिए एक ही ढांचे में ढला हुआ कानून बनाया गया है और उनकी इच्छाओं और ख्वाहिशों को एक छिपे हुए और तंग कैदखाने में बंद कर दिया गया है।
उनके दिमाग के लिए एक गहरी और अंधेरी कब्र खोदी गई है और अगर कोई उसमें से उठे और उनके समाज और उसके कारनामों से अलग हो जाय तो वे कहते हैं कि यह आदमी विद्रोही और बदमाश है। यह बिरादरी से खारिज है और मार डालने लायक है। लेकिन क्या इंसान को कयामत तक इस सड़ियल समाज की गुलामी में जिंदगी बिताते रहना चाहिए या उसे अपनी आत्मा को इन बंधनों से मुक्त करा लेना चाहिए? क्या आदमी को मिट्टी में पड़े रहना चाहिए, या अपनी आंखों को सूर्य बना लेना चाहिए ताकि उसके शरीर की छाया कूड़े-करकट पर पड़ती हुई नजर न आये?