इस उजड़े हुए और सुनसान कमरे में कल वह स्त्री बैठी थी, जिसे मेरा दिल प्यार करता है। इन गुलाबी, नरम और नाजुक गावतकियों पर उसका सिर रखा था और उस स्फटिक के प्याले में उसने इत्र की सुगंध वाली मदिरा की एक बूंद पी थी।
यह जो कुछ था कल था, और ‘कल’ एक सपना है, जो कभी वापस नहीं आ सकता।
लेकिन आज? आज वह स्त्री, जो मेरी अभिलाषाओं की दुनिया थी, एक सर्द, वीरान और बहुत दूर की दुनिया में चली गई है, जिसे अकेलेपन और विस्मरण का देश कहते हैं।
यह स्त्री मेरे हृदय की स्वामिनी है। उसकी उंगलियों के निशान अब तक मेरे आईने पर साफ दिखाई देते हैं। उसकी सांस की सुगंध से मेरे कपड़े अब तक महक रहे हैं। उसकी मीठी आवाज से अब तक मेरे मकान का कोना-कोना गूंज रहा है। परंतु स्वयं वह स्त्री-वह स्त्री, जो मेरे प्यार का केन्द्र है-एक दूर के स्थान को चली गई है, जिसे वियोग और विरह की बस्ती कहते हैं। मगर उसकी उंगलियों के निशान, उसके मुंह की सुगंध, उसकी आत्मा की परछाइयां इस कमरे में कल सुबह तक बाकी रहेंगी। जब हवा के लिए मैं अपने मकान के किवाड़ खोल दूंगा तो उसके झोंके हर उस चीज को उड़ा ले जायेंगे, जो उस सुंदर जादूगरनी ने मेरे लिए छोड़ी है।
यह स्त्री मेरी आकांक्षाओं का मूलस्रोत है। उसका चित्र अब तक मेरे बिस्तर के पास लटक रहा है। उसने जो प्रेमपत्र मुझे लिखे थे, वे अब तक हीरे-मोती जड़े हुए चांदी के बक्से में सुरक्षित हैं। उसके माथे पर लहराने वाले सुनहरे बाल, जो उसने अपनी निशानी के तौर पर मुझे दिये थे, अब तक कस्तूरी और अंबर से सुगंधित गिलाफ में रखे हैं। ये सारी चीजें सुबह तक अपने स्थानों पर रहेंगी। परंतु जब तक सुबह होगी और हवा के लिए मैं अपने दरवाजे खोलूंगा, उसकी लहरें इन सब वस्तुओं को अनस्तित्व या अभाव के अंधेरे में ले जायेंगी, जहां शांति और एकांत का राज है।
नवयुवको! वह स्त्री, जिससे मैं प्यार करता हूं, उन्हीं स्त्रियों जैसी है, जिनसे तुप प्यार करते हो। यह एक विचित्र जीव है, जिसे देवताओं ने कबूतर की संधि-प्रियता, सांप के दांवपेच, मोर का गर्व और अभिमान, भेड़िये की कपटनीति, गुलाब के फूल का सौंदर्य और अंधेरी रातों के डर को मुट्ठी भर राख और चुल्लूभर समुंदर के झाग में मिलाकर बनाया है।
मैं इस स्त्री को, जिससे मुझे प्यार है, बचपन से जानता हूं। जबकि मैं खेतों में उसके पीछे-पीछे दौड़ता था और बाजारों में उसका आंचल पकड़ लेता था। मैं उसे अपनी जवानी के दिनों में भी जानता था, जबकि मैं किताबों में उसके चेहरे का प्रतिबिंब देखता था। शाम के बादलों में मुझे उसका रूप दिखाई देता था और नहरों की जलधारा के कलकल में मैं उसकी आवाज का संगीत सुनता था।
मैं उसे अपनी प्रौढ वय में भी जानता था. जबकि मैं उसके पहल में बैठकर उससे बातचीत करता था। विभिन्न विषयों पर उससे प्रश्न पूछता था, अपने दिल के दर्द की शिकायतें लेकर उसके पास जाता था और अपनी आत्मा के रहस्य उसे बताता था।
यह जो कुछ था, कल था, और ‘कल’ एक सपना है, जो अब कभी वापस नहीं आ सकता। लेकिन आज आज वह स्त्री, जिसे मेरा दिल प्यार करता है, एक सर्द, वीरान और बहुत दूर की दुनिया में चली गई है, जिसे एकांत और विस्मृति का देश कहते हैं। पर इस स्त्री का नाम क्या है, जिसे मेरा दिल प्यार करता है? उसका नाम है जिंदगी।
जिंदगी एक रूपवती और जादूगरनी है, जो हमारे दिलों को लुभाती है, हमारी आत्माओं को बहकाती है और अपनी अनुभूतियों को अपने वायदों से बोझिल बनाती है। अगर ये वायदे बढ़ते चले जाते हैं तो हमारे अंतःकरण में दुःख की चिनगारियां भड़क उठती जिंदगी एक नारी है, जो अपने प्रियतमों के आंसुओं से नहाती है और अपने शहीदों के खून का इत्र मलती है।
जिंदगी एक औरत है, जो उन सफेद दिनों की पोशाक पहनती है जिनमें काली रातों के अस्तर लगे होते हैं।जिंदगी एक स्त्री है, जो मनुष्य-हृदय को अपना मित्र तो बना सकती है, पर पति नहीं बना सकती। जिंदगी एक दुश्चरित्र किंतु सुंदर औरत है। जो कोई उसका दुराचार देखता है, उसके सौंदर्य से घृणा करने लगता है।