रोग

मेरी एक दाढ़ में कीड़ा लग गया था, जो मुझे बहुत तकलीफ देता था। वह दिन की चहल-पहल में चैन से बैठ जाता और रात की खामोशियों में, जब दांत के चिकित्सक आराम से सो जाते और दवाखाने बंद होते, तब वह बेचैन हो उठता।

एक दिन, जबकि मेरा धीरज पूरी तरह समाप्त हो गया, तो मैं एक दंत-चिकित्सक के पास चला गया और उससे मैंने कहा, “इस दाढ़ को निकाल दीजिए। इसने मुझसे नींद का सुख छीन लिया है। मेरी रातें आहें भरते हुए कटती हैं।”

वैद्य ने अपना सिर हिलाया और कहा, “जब दाढ़ का इलाज हो सकता है, तब उसे निकालना निरी मूर्खता होगी।”

उसने दाढ़ को इधर-उधर से खुरचना शुरू किया, और उसकी जड़ों को साफ कर दिया। अजीब-अजीब तरीकों से रोग को दूर करने के बाद, जब उसे विश्वास हो गया कि दाढ़ में एक भी कीड़ा बाकी नहीं रहा है तो उसके छेदों को उसने एक विशेष प्रकार के सोने से भर दिया और गर्व के साथ कहा, “अब तम्हारी यह दाढ नीरोग दाढों से अधिक मजबूत हो गई है।

मैंने उसकी पुष्टि की और उसकी जेब अशर्फियों से भरकर खुशी-खुशी चला आया। लेकिन अभी एक सप्ताह भी न बीतने पाया था कि कम्बख्त दाढ़ में फिर तकलीफ शुरू हुई। उसने मेरी रूह को फिर नारकीय यातनाएं देनी शुरू की।

अब मैं दूसरे डाक्टर के पास गया और बड़ी सावधानी से उससे कहा, “इस खतरनाक सुनहरी दाढ़ को निकाल फेंकिये। बिल्कुल संकोच न कीजिए, क्योंकि कंकड़ियां -चबाने वाला उन्हें गिनने वालों से अलग होता है।”

डाक्टर ने दाढ़ निकाल दी। यह घड़ी यद्यपि यातनाओं और कष्टों की दृष्टि से बड़ी भयंकर थी, फिर भी वास्तव में वह बहुत ही शुभ थी।

दाढ़ को निकाल देने और उसकी अच्छी तरह देखभाल कर लेने के बाद डाक्टर ने कहा, “आपने बहुत अच्छा किया। कीड़ों ने इस दाढ़ में मजबूती से जड़ पकड़ ली थी और उसके अच्छे होने की कोई आशा न थी।”, उस रात मैं बड़े आराम से सोया। अब भी आराम से हूं और दाढ़ निकल जाने पर भगवान को धन्यवाद देता हूं।

मनुष्य-समाज के मुंह में बहुत-सी दाढ़ें ऐसी हैं, जिनमें कीड़ा लगा हुआ है और यह रोग इतना बढ़ गया है कि शरीर की हड्डी तक पहुंच गया है। परंतु मानव-समाज उसकी तकलीफ से बचने के लिए दाढ़े नहीं निकलवाता, बल्कि महज लीपापोती पर संतोष मानता है। वह उन्हें बाहर से साफ कराके उसके छेदों को चमकदार सोने से भर देता है, और बस!

बहुत से वैद्य हैं, जो मानवता की दाढ़ों का इलाज आंखों को लुभाने वाले सोने के पानी और चमकदार वस्तुओं से करते हैं, और बहुत-से रोगी ऐसे हैं, जो अपने को इन सुधार-प्रिय चिकित्सकों के हवाले कर देते हैं और रोग के कष्टों को सहते-सहते अपने को धोखा देकर मर जाते हैं।

वह समाज, जो एक बार बीमार होकर मर जाता है, दोबारा जीवित नहीं होता। वह संसार के सामने अपने आत्मिक रोगों के कारणों और सामूहिक दवाओं की वास्तविकता नहीं बता सकता, जिनको प्रयोग करने से समाज पतन और विनाश की खाई में गिर जाते हैं।

सीरियाई समाज के मुंह में भी जीर्ण-शीर्ण, काली, गंदी और बदबूदार दाढ़ें हैं। हमारे चिकित्सकों ने चाहा भी कि उन्हें साफ करके उनके छेदों को चमकदार चीजों से भर दें और ऊपर सोने का पानी चढ़ायें। पर रोग दूर नहीं हुआ और तब तक दूर नहीं हो सकता जब तक इन दाढ़ों को उखाड़कर फेंक न दिया जाय। फिर जिस समाज की दाढ़ में कोई रोग हो तो उसका पेट भी कमजोर हो जाता है। और बहुत-से समाज ऐसे हैं, जो पाचन-शक्ति के खराब हो जाने से मौत के मुंह में जा पहुंचे हैं।

अगर कोई कीड़ा लगी सीरियाई दाढ़ें देखना चाहता है तो उसे पाठशाला में जाना चाहिए, जहां भविष्य का मानव उन समस्याओं को याद कर रहा है, जो अखफश ने सेबूया से नकल की हैं और सेबूया ने सायक इजआन से, अर्थात् पुरानी घिसी-पिटी बातों को ही हमारे बच्चों को सिखाया जा रहा है, जिनका उन्हें उनके जीवन में आगे चलकर कोई उपयोग होने वाला नहीं है।

या फिर उसे अदालत में जाना चाहिए, जहां मार्गभ्रष्ट बुद्धि कानून के आदेशों से इस प्रकार खेलती है, जिस प्रकार बिल्ली अपने शिकार से। या फिर उसे धनिकों के महलों में जाना चाहिए, जहां बनावट और मक्कारी का बोलबाला है। या फिर उसे गरीबों के झोंपड़ों में जाना चाहिए, जहां डर, डरपोकपन और अज्ञान फैला हुआ है। और उसके बाद उन नरम और नाजुक उंगलियों वाले दांतों के वैद्यों के पास जाना चाहिए, जिनके पास सूक्ष्म उपकरण और बेहोश करने वाली दवाएं हैं और जो कीड़ा लगी दाढ़ों के छेदों को भरने और उनकी सड़ी-गली जड़ों को साफ करने में अपना समय बिताते हैं। जब कोई उनसे बातें करता है, या उनके विशेष गुणों से फायदा उठाना चाहता है तो उन्हें उन बूढ़े खतीबों में से पाता है, जिनके मुंह से फूल झड़ते हैं जो धारावाहिक भाषण देते हैं, जो संस्थाएं बनाते हैं, सभा-सम्मेलन आयोजित करते हैं, और ऐसे जोरदार लेख लिखते हैं, जिनसे आग की चिनगारियां निकलती हैं। उनके भाषणों में एक गीत होता है, जो चक्की के पाटों के गीत से ऊंचा और बरसात की रातों में मेंढक की टर्राहट से अधिक आकर्षक होता है।

पर जब कोई उनसे कहता है कि, “सीरियाई समाज अपने जीवन का भोजन कीड़ा लगी दाढ़ों से चबाता है; इसलिए उसके हर निवाले में जहरीली लार मिली होती है, उस विषैली लार ने उसकी आंतें लगभग बेकार कर दी हैं।”

तो वह उत्तर में यह कहता है, “जी हां। उसके लिए हम एक नई दवा की खोज कर रहे हैं, जिससे बहुत अधिक नशा आयेगा।” और जब कहनेवाला यह कहता है, “इन दाढ़ों को निकलवाने के बारे में आपका क्या विचार है?” तो वे खिलखिलाकर हंसते हैं। इसलिए कि उन्होंने दांतों का अच्छा इलाज | नहीं सीखा है। । प्रश्न के दुहराये जाने पर वे उठ खड़े होते हैं और नाराजगी के स्वर में अपने मन में कहते हैं :

“कैसे हैं दुनिया में ये विचार के बंदे और कितने बेबुनियाद हैं इनके विचार!”

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