रंगे हुए गीदड़

1. सल्मान आफंदी

पैंतीस बरस का मर्द सुडौल शरीर, सुंदर पोशाक, चढ़ी हुई मूंछे, पांवों में चमकदार जूते और रेशमी मोजे, मुंह में कीमती सिगरेट और हाथ में सुंदर, नाजुक छड़ी, जिसकी सुनहरी मूठ में मूल्यवान हीरे-मोती जड़े हुए हैं। आलीशान होटलों में खाना खाता है, जहां शहर के बड़े-बड़े लोग इकट्ठे होते हैं। शानदार गाड़ी में मन बहलाव के मशहूर स्थानों की सैर को जाता है, जिसे दो अत्यंत आकर्षक घोड़े खींचते हैं।

सल्मान आफंदी को अपने बाप से एक फूटी कौड़ी भी विरासत में नहीं मिली। उसका बाप एक गरीब और निर्धन आदमी था, जिसने कभी न व्यापार किया, न पैसा कमाया। वह बेहद सुस्त और आलसी था। काम से वह घृणा करता था। काम करना शान के खिलाफ समझता था। हमने एक बार खुद उसके मुंह से यह सुना था।

“मेरा शरीर और मेरा स्वभाव काम से मेल नहीं खाता। काम उन लोगों के लिए पैदा किया गया है, जिनका स्वभाव रूखा और शरीर खुरदरे हैं।”

तो फिर सल्मान आफंदी ने इतनी संपत्ति कहां से प्राप्त की? वह कौन-सा जादूगर था, जिसने मिट्टी को उसकी मुट्ठियों में सोने-चांदी में बदल दिया?

यह रंगे हुए गीदड़ों के अनगिनत रहस्यों में से एक रहस्य है, जो इजराइल ने हमें बताया और अब हम तुम्हें बताते हैं।

पांच बरस हुए कि सल्मान आफंदी ने सेयदा फहीमा से शादी की। सैयदा फहीमा स्वर्गीय पितरस नौमान नामक व्यापारी की विधवा है, जो अपने परिश्रम, दृढ़ता और ईमानदारी के लिए अपने जमाने के लोगों में मशहूर था। इस समय सैयदा फहीमा की उम्र पैंतालीस बरस की है, पर उसका दिल सोलह बरस का है। वह हमेशा अपने बालों में खिजाब और आंखों में सुरमा लगाती है। वह अपने चेहरे को क्रीम और पाउडर से चमकाती है। मगर सल्मान आफंदी आधी रात से पहले कभी घर में नहीं आता। शायद ही कोई घड़ी होती हो जब वह अपने पति की अंगारे बरसाने वाली नजरों और जली-कटी बातों से बची रहती हो। इसका कारण यह है कि सल्मान आफंदी ने उसकी ओर से आंखें बंद कर ली और उस दौलत को यह दोनों हाथों से लुटा रहा है, जो सैयदा फहीमा के पहले पति ने खून पसीना एक करके जमा की थी।

2. अदीब आफंदी सत्ताइस बरस का नवयुवक-लंबी नाक, छोटी-छोटी आंखें, घिनौना चेहरा, हाथ

स्याही से भरे हुए, नाखून मैल से अटे हुए, शरीर पर फटे-पुराने कपड़े, उन कपड़ों पर जगह-जगह तेल, चिकनाई और कहवे (कॉफी) के दाग।

इस घिनौनी स्थिति का कारण अदीब आफंदी की गरीबी और विवशता नहीं, बल्कि गफलत और बेपरवाई है। दीन और दुनिया की सूक्ष्म तथा जटिल समस्याएं, सत्य की खोज आदि बातों ने उसके मस्तिष्क को घेर रखा है। खुद उसने अमीन जंदी से कहा था, “तबीयत दो चीजों की तरफ ध्यान नहीं दे सकती।”

यानी अदीब (साहित्यिक) लेखन और साफ-सुथरापन दोनों की ओर एक-साथ ध्यान नहीं दे सकता।

अदीब आफंदी बहुत बोलता है और हर समय बोलता है। उसकी दृष्टि में बोलना संसार की सबसे ज्यादा अच्छी बात है। हमें मालूम है कि उसने बैरूत के किसी मदरसे में दो साल तक एक नामी अध्यापक से साहित्य-शास्त्र का अध्ययन किया है। हम यह भी । जानते हैं कि उसने बहुत-से गीत लिखे हैं, लेख लिखे हैं और किताबें भी तैयार की हैं, जो अनेक कारणों से अभी तक प्रकाशित नहीं हो पाई हैं। इनमें सबसे बड़ा कारण अरबी पत्रकारिता का ह्रास और पढ़ने वालों का अनाड़ीपन है।

कुछ दिनों से अदीब आफंदी अपना ध्यान पुराने और नये दर्शन-शास्त्र की बारीकियों । पर लगाये हुए है। वह एक ही समय से सुकरात का भी भक्त है और नीत्शे का भी। वह वाल्टेर के साथ रूसो की भी किताबें दिलचस्पी से पढ़ता है।

हम पहली बार उससे एक शादी में मिले थे। लोग उसके चारों तरफ बैठे गाने और पीने में मस्त थे और वह अपने मशहूर वक्तृतापूर्ण ढंग से शेक्सपीयर के नाटक ‘हैम्लेट’ पर टीका टिप्पणी कर रहा था। दूसरी बार हमने उसे एक रईस के जनाजे में देखा। लोग उसके साथ-साथ दुःखी चेहरे बनाये, सिर झुकाये, धीरे-धीरे चल रहे थे, और वह अपनी खास वक्तृतापूर्ण शैली में फारस की गजलों और अबू नवास की रूबाइयों पर चर्चा कर रहा था।

अदीब आफंदी इस प्रकार का जीवन क्यों बिता रहा है? पुरानी किताबों के सड़े-फटे – पन्नों में अपने दिन-रात बरबाद करने से उसे क्या मिलता होगा? वह एक गधा क्यों नहीं खरीद लेता और उसे किराये पर देकर भाड़े पर धनी बने हुए अमीरों में क्यों शामिल नहीं हो जाता?

यह रंगे हुए गीदड़ों के अनेक रहस्यों में से एक रहस्य है, जो बाल्सबोल ने हमें बताया और हम अब तुम्हें बताते हैं।

तीन बरस हुए कि अदीब आफंदी ने पादरी योहन्ना शमऊन की तारीफ में एक कसीदा लिखा और हबीब ब्रुक सल्वान के घर में उसके सामने पढ़ा। कसीदा समाप्त हो जाने के बाद पादरी ने उसे बुलाया, और उसके कंधे पर हाथ रखकर मुस्कुराते हुए कहा “बेटा, भगवान तुझ चिरंजीवी बनाये! तू बड़ा प्रतिभाशाली कवि और श्रेष्ठ साहित्यिक है। मैं तुझ जैसे गुणी आदमी पर गर्व करता हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि तू एक दिन पूरब के महान् साहित्यकारों में गिना जायेगा।”

उस दिन से लेकर आज तक अदीब आफंदी अपने बाप, मामूं और चचा की स्तुति का केंद्र बना हुआ है। वे गर्व के साथ उसका उल्लेख करते हैं और कहते हैं  “क्या पादरी योहन्ना शमऊन ने यह भविष्यवाणी नहीं की है कि यह एक दिन पूरब के बड़े लोगों में गिना जायेगा?”

3. फरीद वईबस चालीस

बरस का प्रौढ़ पुरुष-लंबा शरीर, छोटा-सा सिर, बड़ा मुंह, संकरा माथा। अकड़ी हुई गर्दन के साथ छाती निकालकर धीरे-धीरे चलता है। उसकी चाल उस ऊंट की _चाल से मिलती-जुलती है, जिसकी पीठ पर महमिल हो। जब वह ऊंची आवाज और शान के साथ बात करता है तो अनजान आदमी यह समझता है कि यह सरकार का कोई मंत्री है, जो लोगों की स्थिति सुधारने और प्रजा के कष्टों को दूर करने में व्यस्त है। फरीद को इसके सिवाय कोई काम नहीं कि सभाओं में सभापति के आसन पर बैठे और अपने बुजुर्ग खानदान के गुण गवाये या अपने श्रेष्ठ स्थान की विशेषताएं बताये। वह नेपोलियन और उसके जैसे बहादुरों और बड़े लोगों की करतूतों और जीवनियों के बारे में बहुत दिलचस्पी से बातें करता है। बढ़िया अस्त्र-शस्त्र जमा करने का उसे खास शौक है। वे उसके घर की दीवारों पर अच्छे ढंग से लगाये हुए भी हैं, लेकिन वह उनका प्रयोग करना नहीं जानता।

उसकी एक उक्ति यह है

“भगवान ने मनुष्यों को दो समूहों में बांटा है। एक समूह सेवा करने के लिए और दूसरा सेवा लेने के लिए।”

उसकी दूसरी उक्ति यह है

“खानदान एक अड़ियल टटू है, जो उस समय तक नहीं चलता, जब तक कोई उसकी पीठ पर सवार न हो जाय।”

यह तीसरी उक्ति भी उसी की समझी जाती है”कलम कमजोरों के लिए है और तलवार बलवानों के लिए।”

अच्छा, तो वे कारण कौन से हैं, जिनके आधार पर फरीद अपनी बढ़ाई की डींगें मारता है, अपने ऊंचे खानदान से होने का ढिंढोरा पीटता है और अपनी तारीफ का प्रदर्शन करके लोगों पर रौब गांठता है?

यह रंगे हुए गीदड़ों के अनेक रहस्यों में से एक रहस्य है, जो सतनाइल ने हमें बताया और हम तुम्हें बताते हैं

उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में सुल्तान बशीर शहाबी अपने अमीरों के साथ लेबनान की घाटियों में सैर और मन-बहलाव के लिए आया था। संयोग की बात है कि जब वह उस गांव के पास से गुजरा, जिसमें फरीद बक वईबस का दादा मंसूर वक वईबस रहता था, धूप तेज हो गई और सूरज की बारीक किरणें धरती की छाती छेदने लगीं। सुल्तान गरमी को बर्दाश्त न कर सकने के कारण घोड़े से उतर पड़ा और उसने साथियों से कहा

“आओ, थोड़ी देर इस बलूत के साये में आराम करें।”

जब मंसूर वईबस को इस बात का पता चला तो उसने अपने पड़ोसी किसानों को बुलाया और उन्हें बताया कि सुल्तान का उनके गांव के पास शुभागमन हुआ है। यह सुनकर वे सब के सब अंजीर और अंगूर की डालियां और दूध तथा शहद की मटकियां लेकर मंसूर के पीछे-पीछे उस बलूत के पेड़ की ओर चले, जहां सुल्तान बशीर शहाबी आराम कर रहा था। वहां पहुंचने पर मंसूर बईबस आगे बढ़ा और उसने सल्तान के चोंगे को चूम लिया। फिर उसके कदमों में एक बकरा काट दिया और ऊंची आवाज में बोला

“यह सब जहांपनाह की दया और मेहरबानी का फल है।”

सुल्तान ने अपनी प्रसन्नता प्रकट करने के लिए उसे खिलअत से सम्मानित किया और कहा

“तुम आज से इस गांव के सरदार हो, जिस पर हमारी विशेष कृपा बनी रहेगी। जाओ माबदौलत ने तुम्हारे गांव वालों को इस साल शाही लगान माफ कर दिया है।”

अमीर के चले जाने के बाद उस रात गांव के सारे लोग सरदार मंसूर वईबस की खिदमत में हाजिर हुए। उन्होंने उसे अपने सुख-दुःख का स्वामी मान लिया। अल्लाह उन :सब पर रहम करे। रंगे हुए गीदड़ों के और भी बहुत से रहस्य हैं, जिनसे शैतान हमें दिन-रात परिचित कराता रहता है, और इससे पहले कि जमाना हमें संसार के उस पार पहुंचा दे, हम तुम्हें उन रहस्यों को बता देंगे। लेकिन इस समय रात आधी हो चुकी है और हमारी पलकें थक गई हैं। इसलिए हमें सोने की आज्ञा दो। बहुत मुमकिन है कि सपनों की परी हमारी आत्मा को उस जगत में ले जाय, जो इस जगत से कहीं अधिक पवित्र और अच्छा है।

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