मेंढक

गर्मी का दिन था। एक मेंढक ने अपनी सहचरी से कहा, “जान पड़ता है कि हमारे रात्रि के गीतों से किनारे के मकान वालों को कुछ असुविधा अवश्य होती होगी।”

सुनकर उसकी सहचरी ने कहा, “हूं-क्या वे दिन के समय अपने वार्तालाप से हमारी शांति भंग नहीं करते?”

मेंढक बोला, “लेकिन, यह तो मानना ही चाहिए कि रात्रि के समय गाते हुए हम कुछ ज्यादती कर देते हैं।”

इस पर सहचरी बोली, “अरे, वे भी तो दिन के समय व्यर्थ की बकवास करते और । शोर मचाते रहते हैं।”

मेंढक ने कहा, “अच्छा, उस मोटे मेंढक के बारे में भी सोचो जो अपनी कर्कश वाणी से सारे पड़ोस की नींद हराम किये रहता है।”

सहचरी ने कहा, “लेकिन तुम उन राजनीतिज्ञों, धर्मोपदेशकों और वैज्ञानिकों की बात सोचो, जो किनारे पर आकर अपनी चिल्लपों और चीख-पुकार से जमीन-आसमान गुंजा डालते हैं।”

तब मेंढक बोला, “कुछ भी हो, कम-से-कम हम इन मनुष्यों से अधिक शिष्ट बनें और रात्रि के समय बिल्कुल शांत रहें। अपना संगीत अपने हृदय में ही निहित रखें, भले ही चन्द्रमा हमारा स्वर और तारे हमारा संगीत सुनने के लिए हमें प्रेरित क्यों न करें। हमें कम-से-कम एक-दो रात या फिर तीन रात चुप रहकर देखना चाहिए।”

सहचरी बोली, “बहुत अच्छा, मुझे स्वीकार है। देखें, तुम्हारे हृदय की इस उदारता का क्या परिणाम निकलता है।”

उस रात को सारे मेंढक चुप रहे, दूसरी रात को भी और तीसरी रात को भी।

लेकिन आश्चर्य की बात थी कि एक बातूनी स्त्री, जो कि झील के किनारे रहा करती थी, जब तीसरे दिन प्रातःकाल नाश्ता करने बैठी तो अपने पति से चिल्लाकर बोली, “तीन रातें बीत गईं, मुझे नींद नहीं आई। मेरे कानों में जब तक मेंढकों की आवाज आती रहती थी, मेरी नींद सुरक्षित रहती थी। अवश्य कोई अनहोनी घटना घटी है, जिससे तीन रातों से मेंढकों ने गाना बन्द कर रखा है। मैं तो अनिद्रा के कारण बस पागल जैसी हो रही हूं।”

उस मेंढक ने यह सुनकर अपनी सहचरी की ओर मुंह करते हुए आंखें मटका कर कहा, “और हम लोग भी इस मौनावलम्बन के कारण पागल से हो रहे हैं। क्यों है न ऐसा ही?”

तब उसकी सहचरी ने उत्तर दिया, “जी हां, रात्रि की निस्तब्धता तो हमारे लिये असह्य थी और अब मैं ऐसा ख्याल करती हूं कि जो अपनी निस्तब्धता को कोलाहल से पूर्ण रखना चाहते हैं, उन लोगों की सुविधा का ध्यान रखते हुए भी हमें अपना गाना बंद नहीं करना चाहिये।”

उस रात्रि को चन्द्रमा का उनके स्वर का और नक्षत्रों का उनके संगीत का आह्वान करना व्यर्थ नहीं गया।

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