चक्रवर्ती का स्तंभ

“बाबा यह कैसे बना? इस को किस ने बनाया? इस पर क्या लिखा है?” सरला ने कई सवाल किए.

बूढ़ा धर्मरक्षित, भेड़ों के झुंड को चरते हुए देख रहा था. हरी टेकरी झारल के किनारे संध्या के आपत की चादर ओढ़ कर नया रंग बदल रही थी. भेड़ों की मंडली उस पर धीरेधीरे चरती हुई उतरनेचढ़ने में कई रेखा बना रही थी.

अब की ध्यान आकर्षित करने के लिए सरला ने धर्मरक्षित का हाथ खींच कर उस स्तंभ को दिखलाया. धर्मरक्षित ने निःश्वास ले कर कहा, “बेटी, महाराज चक्रवर्ती अशोक ने इसे कब बनाया था. इस पर शील और धर्म की आज्ञा खुदी है. चक्रवर्ती देवप्रिय ने यह विचार नहीं किया कि ये आज्ञाएं बकबक मानी जाएंगी. धर्मोन्मत्त लोगों ने इस स्थान को ध्वस्त कर डाला. अब विहार में डर से कोईकोई भिक्षुक भी कभी. दिखाई पड़ता है.”

वृद्ध यह कह कर उद्विग्न हो कर कृष्ण संध्या का आगमन देखने लगा. सरला उसी के बगल में बैठ गई. स्तंभ के ऊपर बैठा हुआ आज्ञा का रक्षक सिंह धीरेधीरे अंधकार में विलीन हो गया.

थोड़ी देर में एक धर्मशील कुटुंब उसी स्थान पर आया. जीर्ण स्तूप पर देखतेदेखते दीपावली हो गई. गंधकुसुम में वह स्तूप अर्चित हुआ. अगरु की गंध, कुसुम सौरभ तथा दीपमाला से वह जीर्ण स्थान एक बार आलोकपूर्ण हो गया.

सरला का मन उस दृश्य से पुलकित हो उठा. वह बारबार वृद्ध को दिखाने लगी, धार्मिक वृद्धि की आंखों में उस भक्तिमयी अर्चना से जलबिंदु दिखाई देने लगे. उपासकों में मिल कर धर्मरक्षित और सरला ने भी भरे हुए हृदय से उस स्तूप को भगवान के उद्देश्य से नमस्कार किया.

टापों के शब्द वहां से सुनाई पड़ रहे हैं. समस्त भक्ति के स्थान पर भय ने अधिकार कर लिया. सब चकित हो कर देखने लगे. उल्काधारी अश्वारोही और हाथों में नंगी तलवार! आकाश के तारों ने भी भय से मुंह छिपा लिया. मेघमंडली रोरो कर मना करने लगी, किंतु निष्ठुर सैनिकों ने कुछ न सुना. तोड़ताड़, लूटपाट कर के सब पुजारियों को, ‘बुतपरस्तों को बांध कर उन के धर्मविरोध का दंड देने के लिए ले चले. सरला भी उन्हीं में थी.

धर्मरक्षित ने कहा, “सैनिको, तुम्हारा भी कोई धर्म है?”

एक ने कहा, “सर्वोत्तम इसलाम धर्म.”

धर्मरक्षित-“क्या उस में दया की आज्ञा नहीं है?”

उत्तर न मिला.

एक दूसरा-“है क्यों नहीं? दया करना हमारे धर्म में भी है. पैगंबर का हुक्म है, तुम बूढ़े हो, तुम पर दया की जा सकती है. छोड़ दो जी, उस को.”

बूढ़ा छोड़ दिया गया.

धर्म.-“मुझे चाहे बांध लो, किंतु इन सबों को छोड़ दो. वह भी सम्राट था, जिस ने इस स्तंभ पर जीवों के प्रति दया करने की आज्ञा खुदवा दी है. क्या तुम भी देश विजय कर के सम्राट हुआ चाहते हो? तब दया क्यों नहीं करते?”

एक बोल उठा, “क्या पागल बूढ़े से बकबक कर रहे हो? कोई ऐसी फिक्र करो कि यह किसी बुत की परस्तिश का ऊंचा मीनार तोड़ा जाए.”

सरला ने कहा, “बाबा, हम को ये सब लिए जा रहे हैं.”

धर्म.-“बेटी, असहाय हूं, वृद्ध बांहों में बल भी नहीं है, भगवान की करुणा का स्मरण कर. उन्होंने स्वयं कहा है कि, “संयोगः विप्रयोगंताः.” .

निष्ठर लोग हिंसा के लिए परिक्रमण करने लगे. किंतु पत्थरों में चिल्लाने की शक्ति नहीं है कि उसे सुन कर वे क्रूर आत्माएं तुष्ट हों. उन्हें नीरव रोने में भी असमर्थ देख कर मेघ बरसने लगे. चपला चमकने लगी. भीषण गर्जन होने लगा. छिपने के लिए वे निष्ठुर भी स्थान खोजने लगे. अकस्मात एक भीषण गर्जन और तीव्र आलोक, साथ ही धमाका हुआ.

चक्रवर्ती का स्तंभ अपने सामने यह दृश्य न देख सका. अशनिपात (बिजली गिरने से ) से खंडखंड हो कर गिर पड़ा. कोई किसी का बंदी न रहा.

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