किसी धनी आदमी की एक युवती पत्नी थी, जो वज्र बधिर थी।
एक दिन प्रातःकाल जब वे लोग नाश्ता कर रहे थे, उसने अपने पति से कहा, “कल – जब मैं हाट में गई थी, तब वहां दमिश्क के रेशमी थान, भारतवर्ष की चादरें, फारस के कंठहार और यमन की चूड़ियां देखने में आई थीं। मालूम होता है कि ये वस्तुएं अभी-अभी हमारे नगर के काफिले के साथ आई हैं, और जरा मुझे देखो, मैं एक सम्पन्न व्यक्ति की स्त्री होते हुए चिथड़े वस्त्र पहने हुए हूं। मैं उन सुन्दर वस्तुओं में से कुछ अवश्य खरीदूंगी।”
उसके पति ने कॉफी पीते हुए कहा, “मेरी प्रिये, कोई कारण नहीं कि तुम बाजार में जाकर अपनी पसन्द की चीजें न खरीदो।”
तब उस बहरी स्त्री ने कहा, “नहीं, तुम हमेशा नहीं-नहीं कह देते हो। क्या मैं ये चिथड़े लपेटे अपने मित्रों के सामने, अपने घरवालों और तुम्हारी सम्पदा को लज्जित करती रहूँ ।”
पति ने कहा, “मैंने तो कभी ‘नहीं’ नहीं की। तुम निस्संकोच बाजार में जाकर सुन्दर-से-सुन्दर वस्त्र और बहुमूल्य जवाहिरात, जो तुम्हारे नगर में आये हुए हैं, खरीदो।”
फिर भी उसकी पत्नी ने अपने पति के शब्दों को सुनने में भूल की और उसने उत्तर दिया, “सारे धनवानों में तुमसे बढ़कर कृपण कोई दूसरा नहीं। तुम सौन्दर्य और सजावट की प्रत्येक चीज के लिए इन्कार कर देते हो, जब कि नगर की मेरी ही उम्र वाली अन्य स्त्रियां सुन्दर-सुन्दर मूल्यवान कपड़ों से सज-धज कर नगर के बगीचों में घूमती फिरती हैं।”
इतना कहकर वह रोने लगी और जब उसके आंसू उसके वक्षस्थल पर गिरने लगे तब वह पुनः चिल्लाकर बोली, “जब कभी मुझे किसी वस्त्र या आभूषण की चाह होती है, तब तुम हमेशा न कर देते हो।”
पति विचलित हो उठा और खडे होकर अपने बटए से मटठी भर अशर्फियां निकाल कर उसके सामने रख दी और बड़ी नम्रता से बोला, “मेरी प्रिये! बाजार जाकर जो तुम्हारी इच्छा हो खरीद लाओ।”
उस दिन से जब कभी उस बहरी स्त्री को किसी वस्तु की दरकार होती थी, तो वह अपने पति के सामने अपनी आंखों में मोती जैसे आंसू भरकर खड़ी हो जाती थी और उसका पति चुपचाप मुट्ठी-भर अशफियां उसके आंचल में डाल देता था।
एक बार, संयोग की बात कि वह नवयुवती किसी दूसरे युवक से प्रेम करने लगी, जिसे बड़ी लम्बी-लम्बी यात्राएं करने का शौक था। जब कभी वह प्रवास में होता तो वह एकान्त कमरे में बैठ कर रोया करती थी। इधर जब कभी पति उसे इस प्रकार रोते हुए देख लेता तो वह अपने मन में कहने लगता, “बाजार में शायद कोई नया काफिला रेशमी कपड़े और बहुमूल्य जवाहिरात लेकर आया होगा।”
और वह मुट्ठी भर अशर्फियां लेकर उसके सामने रख दिया करता था।